Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३८-३९ कंईक सुधारावाळी छतां बीजी रीतनी भूलनी परंपरानो ख्याल आपे छे. श्रीरलमंडनसूरि अने श्रीरत्नमंदिरगणि बंने भिन्न व्यक्तिओ छे एवू पं. लालचंदभाईनुं कथन साचुं छे, पण बंने नंदिरत्नना शिष्यो नथी. श्रीरत्नमंडनसरि श्रीसोमसुंदरसूरिना के तेमना शिष्य सोमदेवसूरिना शिष्य छे अने रत्नमंदिरगणि सोमसुंदरसूरिना रत्नशेखरसूरि, तेना नंदिरत्नना शिष्य छे. आ हकीकत बीजी रीते पण पुरवार थई शके तेवी छे. "सोमसौभाग्यकाव्य" नी रचना सं. १५२४मां थयेली छे. तेमां तेमने 'सूरिराट' जणाव्या छे. तेमने लगभग ए अरसामां सूरिपद मळ्युं होय तो तेमनी वधुमां वधु ५० वर्षनी वय धारीए तो तेमनी विद्यमानतानो समय सं. १४७४-७५ लगभगनो गणाय. प्रस्तुत प्रतिना मथाळे 'श्रीसोमदेवसूरिगुरुभ्यो नमः"ने मूळ प्रतिनी नकल मानीए तो तेओ निश्चितरूपे श्रीसोमदेवसूरिना शिष्य होवा जोईए. श्रीसोमसुंदरसूरिने 'रंगसागर फाग'मां स्मर्या छे ए जोतां तेओ तेमना शिष्य अने सोमदेवसूरिना गुरुभाई पण होय. तेमना समयमां गुरुभाईओमा अणबनाव प्रवर्तातो हतो. तेथी श्रीलक्ष्मीसागरसूरिए सं. १५१७ मां लाटापुरीमां श्री रत्नशेखरसूरिए पट्टाभिषेक कर्यो ते पछी तेमने श्रीसोमदेवसूरि अने रत्नमंडनसूरि साथे गच्छमेळ करवानी जरूर पडी त्यारे तेओ खंभात आव्या अने १५२०मां' मेळ कर्यो. ए संबंधे "गुरुगुणरत्नाकरकाव्य" मां ज उल्लेख छे के - "श्रीसोमदेवाह्वयसूरिसूत्रिताऽत्याक्षेपतः पक्षपृथक्त्वमोक्षिषु । निर्णिक्तहेमेव नतेषु तेषु च श्रीस्तम्भतीर्थे नगरे गुरूत्सवैः ।।१२।। स्व-दृक्-शरोविशशरदि व्यधायि यैर्यदा गणैक्यं धनसङ्घसाक्षिकम् ।" आ वर्णन उपरथी जाणी शकाय छे के श्री लक्ष्मीसागरसूरि करतां श्रीसोमदेवसूरि अने श्रीरत्नमंडनसूरि मोटा हता तेथी तेमनी पासे आवीने श्रीलक्ष्मीसागरसूरि ए मेळ कर्यो. उपदेशतरङिगणीना कर्ता श्री रत्नमंदिरगणि ए भोजप्रबन्धनी रचना सं. १५१७ मां करी छे. अने रत्नमंडनसूरि सं. १५४१ सुधी तो जीवित हता ज. ए जोतां तेओ बंने समकालीन तो छे ज, परंतु वय अने दीक्षापर्यायमां पण मोटा १. श्री देसाइए "जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'ना पृ. ४९७ पर आ गच्छमेळनो सं. १५२७ आप्यो छे, अने तेनी ज नकल "श्रीतपागच्छपट्टावली"मां श्री कल्याणविजयजीए करी छे, पण ए मेळ सं. १५१७ नहि पण १५२०मां थयो छे, ए उपर्युक्त वर्णनथी जाणी शकाय छे. For Private and Personal Use Only

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