Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ मार्च-अप्रैल · २०१४ भावने एक नाना 'देशीबंध' दूहा छंदमां समाववो अने तेमाये यमकबंधनो ख्याल राखवो ए ऊंचा प्रकारना कवित्वनुं भान करावे छे. पं. रत्नमंडनगणि तेमना समयना प्रतिष्ठित प्रौढ विद्वान हता ए तेगनी बीजी रचनाओथी पण जाणी शकाय छे. आ ज कवि- एक बीजु काव्य "नेमिनाथ नवरस फाग (रंगसागर फाग)" नामर्नु मळे छे. तेमांथी श्री. मोहनलाल देसाई ए "जैनयुग पु. २ ना ७-८मां अंक''मां 'प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन' ए शीर्षक हेटळ अवतरण आपेलुं छे. एमाथी रचनाशैली तेमना प्रौढ कवित्वनो ख्याल आपती गमे तेने मुग्ध बनावे तेवी छे. तेमां पण तेमणे मानवशृंगारनी भावनाने बहेती मूकी संयमनो सीमाबंध बांधी पोतानी कवित्वकळानो परिचय आप्यो छे. आ सिवाय तेमनी सुकृतसागर (पेथङ-झांझण प्रबंध), मुग्धमेधालंकार, जल्पकल्पलता, संवादसुंदर वगेरे कृतिओ पण मळी आवे छे. (३) सं. १५२४मां श्रीप्रतिष्ठासोमे रचेला "सोमसौभाग्यकाव्य" ना छेल्ला सर्ग १०ना श्लोक ४४-४५मां तेमनी प्रतिभानुं वर्णन मळे छे - श्रीमान् राजति रत्नमण्डनगुरुबुद्ध्या गुरुश्चातुरों भ्राजिष्णुः स्मरजिष्णुरुष्णकिरणप्रोनिद्रभाभास्वरः । यद्वक्तृत्व-कवित्वकाम्यकलया ते रञ्जिता वादिनो विद्वांसश्च न धूनयन्ति तरसा स्वीयं शिरः के भुवि? ||४४।। गम्भीरैर्मधुरैर्महार्थरुचिरैः स्फारैरुदारैः परैः पद्यैर्हृद्यतमैश्च गद्यपटलैर्जल्पन्नविश्रान्तगीः । विद्वत्संसदि रत्लमण्डनमिवाभाति स्म यः स्मेरभा स्तल्लेभे भुवि रत्नमण्डन इति ख्याताभिधां सूरिराट् ।।४५।। वळी सं. १५४१मां श्रीसोमचारित्रगणिए रचेला "गुरुगुणरत्नाकरकाव्य 'ना सर्ग २ना श्लो. ११मां पण नीचे मुजब तेमनुं वर्णन मळे छ - "वाग्देवतादत्तवरा व्रतीश्वरा दीव्यद्वपूरूपपराजितस्मराः । चकाशिरे ये कविमौलिमण्डनाऽनुकारकाः श्रीगुरुरत्नमण्डनाः ।।११।।" आ अवतरणो उपरथी श्रीरत्नमंडनसूरि अने रत्नमंदिरगणिने एक गणी आलेखता श्री देसाईनी अने तेनी नकल करता श्री. कापडियानी भूल तेम ज पं. लालचंदभाइनी For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84