Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० मार्च-अप्रैल - २०१४ अनेक लाभो थता होइ बधा साधको ए सदा स्वाध्याय करवो जोईए. रोजे रोज नवं ज्ञान प्राप्त कर जोईए. सहना जीवननी एक एक क्षण महत्त्वनी छे. तेथी ज प्रभु महावीर परमात्माए श्री गौतमस्वामीने कह्यु के. हे गौतम, एक समय पण प्रमाद न कर. गौतमस्वामी जरा पण प्रमाद करता न हता. सदा अप्रमत्त रहेता हता, छतां आवो उपदेश आपवानुं कारण एटलुं ज के बीजा साधुओ वगेरेने समयनी महत्ता समजाय. साधुओ ए सदा संयममां, संयमना अनुष्ठानोमां रत रहेवू जोईए एटले के जे वखते प्रतिलेखनादि जे क्रिया करवानी होय, ते वखते ते क्रिया करवी जोईए. बाकीना समयमा स्वाध्याय करवो जोईए. आथी ज भुवनदेवीनी स्तुतिमा साधुओ माटे विशेषण वापर्यु छ : नित्यं स्वाध्याय संयमरतानां । घरनी सफाई दररोज करवी पड़े छे, कपडां रोज धोवां पडे छे, शरीरनी सफाई पण दररोज करवी पडे छे. तेवी रीते अंतःकरणनी सफाई माटे ‘स्वाध्याय' अनिवार्य छे. आवा प्रकारनो विशिष्ट कर्म निर्जराकारक स्वाध्याय आपणा सहुना जीवनमा प्रतिदिन मळो. संदर्भ साहित्य १. कापडिया बिपिनचंद्र हीरालाल जैनधर्मनां स्वाध्याय-सुमन मुंबई, जैन युवक संघ, ई.स. २०००, किं. रू. १००, पृ. २५६ २. दोशी, सरयु विनोद (संकलनकर्ता) जैन व्रत तप, मुंबई, नवभारत साहित्य मंदिर, ई. स. २००२, किं. रू. १५०, पृ. ३१२ ३. आ. राजशेखररारि म. साहेब तप करीए भवजल तरीए, भिवंडी, वि अरिहंत आराधक ट्रस्ट इ. स. २००२, किं. पठन-पाठन, पृ. ३८४ ४. शाह धीरजलाल टोकरशी तपनां तेज, वडोदरा, मुक्तिमल जैन मोहनग्रन्थमाळा, वि. सं. २००८. किं. १.०० पृ. ७२ ५. तप अने तपस्वी अमदावाद, दिव्य दर्शन कार्यालय, वि. सं. २०१३, पृ. ३२ For Private and Personal Use Only

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