Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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मास : ९
कोइ भवनुं वैर संभाली, आ दुख दरीआमां डारी हो । हितकर मझ विनति सुंणावो, जइ अमृत वयणें मनावो हो
|| जड़ने केज्यो भारा वालाजी रे ए देशी ।।
श्रावण श्रवणेने सुण्यो हितकारीजी रे । सरवडीयें वरसंत,
जइने केज्यो प्रीतमजीनें रे... (आंचली)
प्रीउ जोवानें टगमगें, नयणे निर झरंत जइ
भारे गाजें भाद्रवो, घरि आवो जी रे ।
भरीयां नदीये नीवांण, वेहला आवो प्राणेसरजी रे, समुद्रविजय घरें सुत नहीं घरि आवोजी रे । किम करी राखूं हो प्राणेसरजी रे
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खान पान वसते करूं हितकारीजी मनगमता हो सिणगार जइ । कहें अमृत वालिम घरें नही ही. लेखें नही अवतार जइ
मास : १०
चंद्रादिक ग्रह जाणती घरि आवोजी रे । जोसीडें पुछती हो जोस,
रमतां कांता किम मलें घरि आवोजी रे । अमृत रसना हो धांम
मार्च-अप्रैल २०१४
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मास : ११
आसोई आस्या जग दोहिली रे, जस होइं वालिम संगे लाल । केज्यो संदेस्यो ए पंथीया रे, वीछडीआं हरणां जसी रे, तिम अबला नित झूरे लाल केज्यो संदेस्यो
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।।२।।
।।३।।
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।।२।।
।।१।।
रंग सूरंगी साहेलडी रे, खेलती प्रीतम संगे लाल केज्यो संदेस्यो । आदिवालीना दिहडा रे, आव्यो सुखभर संगे लाल केज्यो संदेस्यो । । २ । ।

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