Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org मास : ९ कोइ भवनुं वैर संभाली, आ दुख दरीआमां डारी हो । हितकर मझ विनति सुंणावो, जइ अमृत वयणें मनावो हो || जड़ने केज्यो भारा वालाजी रे ए देशी ।। श्रावण श्रवणेने सुण्यो हितकारीजी रे । सरवडीयें वरसंत, जइने केज्यो प्रीतमजीनें रे... (आंचली) प्रीउ जोवानें टगमगें, नयणे निर झरंत जइ भारे गाजें भाद्रवो, घरि आवो जी रे । भरीयां नदीये नीवांण, वेहला आवो प्राणेसरजी रे, समुद्रविजय घरें सुत नहीं घरि आवोजी रे । किम करी राखूं हो प्राणेसरजी रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खान पान वसते करूं हितकारीजी मनगमता हो सिणगार जइ । कहें अमृत वालिम घरें नही ही. लेखें नही अवतार जइ मास : १० चंद्रादिक ग्रह जाणती घरि आवोजी रे । जोसीडें पुछती हो जोस, रमतां कांता किम मलें घरि आवोजी रे । अमृत रसना हो धांम मार्च-अप्रैल २०१४ 11 ettet deuriat etset è v delt 11 मास : ११ आसोई आस्या जग दोहिली रे, जस होइं वालिम संगे लाल । केज्यो संदेस्यो ए पंथीया रे, वीछडीआं हरणां जसी रे, तिम अबला नित झूरे लाल केज्यो संदेस्यो For Private and Personal Use Only 113 11 ।।२।। ।।३।। 119 11 ।।२।। ।।१।। रंग सूरंगी साहेलडी रे, खेलती प्रीतम संगे लाल केज्यो संदेस्यो । आदिवालीना दिहडा रे, आव्यो सुखभर संगे लाल केज्यो संदेस्यो । । २ । ।

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