Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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२०
मार्च-अप्रैल - २०१४ || कारतिक मासें कंत गेली चाल्या रे ए देशी ।।
मास:३
नाह विण माहनी रेंण, किम हि न जाइ रे। तल पतां अणमिष नेण, वरस सो थाई रे, रसवती षट रस सार, भोजन केरी रे। नवरस(सर) मुगताहार, भावो भलेरी रे तरुणी तेल तंबोल, अमृत रस पीजें रे। सीत्त सजाइस्यूं, बोल सीत गमी जे रे, विरहानल मझ एम, अधिक संतापे रे। केंहेंज्यो वालेसर एम, प्रीउ घेर आवे रे
||१||
1॥२।
मास : ४
||१||
फागुण मासे कंत, जो होइं संगे रे। लाल गुलाल वसंत, खेलीइं रंगे रे, भोली टोली भोर, सरखें साथे रे। होली रमीइं जोर, हाथो-हाथें रे झोली भरी झूझार, अबीरनी आलिं रे। कंत वीछोहि नारि, ए दिन सालें रे, वीसरांमी केहेज्यो ए, वहेला घरे आवे रे | अमृत वयणे जेम, राजुल मना रे
11२।
मास : ५
चैत्रे तरुवर पलट्ठाइंजी, चीत्रीत फुली वनराय जी।। सदी कुसम लता महकायजी, रणझण मधुकर गुणराय जी, घर आवी नेम रुठडी राजुल, मनावो सहि एक वेला। अलवेसर एम घj घणुं सुरे, कहावो मीत हमेरा ||१।। (आंकणी) आ एह वखतमा कंतजी, घरें आवीने जुओ वसंतजी। तोरी दयकमल विकसंत जी, जे(ज्यु) चंद चकोर देखंत जी
घर आवी नेम ||२||
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