Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-अप्रैल - २०१४ छे. एवा स्वघरमां आपणे मळशुं त्यारे एकमेकमां समाइ जशुं.' अहीं नेमिनाथ राजुलने स्थिरभावना मंदिरमा प्रवेशवानो संदेशो मोकलावे छे. स्वमा स्थिर थया विना सिद्धि नथी तेवो कविश्री नेमनाथ भगवानना पात्र द्वारा उपदेश आपे छे. कवि लौकिक भावोने छोडी लोकोत्तर भावो तरफ वळे छे. शृंगार रसने छोडी वीररस के शांतरसनो स्पर्श करे छे. कवि वासनाना उभारने विवेकथी शांत करी वैराग्यमां लई जाय छे, 'नेम-राजुल बीहुँ मलीयां रे, पाम्या सुख अनंता लाल, सुधातम गुंण नीपना रे, नीज नीज पद वीलसंता लाल'...(५) अंते नेमनाथ भगवान अने राजुल बन्ने सिद्धगतिना सोपानो चढी सिद्धालयमा अनंत सिद्धोनी वसाहतमां भळी गया. तेओ अनंतकाळ सुधी अनंत सुखोना स्वामी बन्या. तेमणे आत्माना ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य जेवा गुणो प्राप्त कर्या. तेओ स्व स्वभावमां सदा रत रहे छे. पोताना सिद्धस्वरूपने सादि अनंत भागे विलसी रह्या छे. अंतिम कडीमां कवि काव्यर्नु रचना वर्ष समस्या (उखाणा)मां आलेखे छे. कवि ऋषभदास, कवि वीरविजयजी, कवि लावण्यसमय, कवि समयसुंदर आदि घणा मध्यकालीन कविओए आ परंपराने अपनावी छे. कवि अमृतविजयजी पण ते परंपराने अनुसरे छे. प्रस्तुत बारमासाना अंतमां लखेला विवेक पदथी कर्ताए पोताना सद्गुरुर्नु नाम अने त्यारबाद पोतानुं नाम काव्यना कर्ता तरीके प्रयोज्युं छे, जै. गू. क. भाग ६मां १३१२ नं. उपर प्रस्तुत अमृत विजयजीनी बे जेटली ज कृतिओ नोंधायेली जोवा मळे छे. परंतु ए सिवाय पण एमणे नेमिजिन रतवन, शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, पार्श्वजिन विवाहलो, सदयवच्छराज रास, सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन विगेरे १५थी वधारे रचनाओ मध्यकालीन साहित्यने अपी छे. ज्ञानमंदिरमा संगृहित प्रत नं. ५७६१०मां मळती प्रतिलेखन पुष्पिका अनुसार पार्श्वनाथ विवाहलानी प्रत अमृतविजयजी म. सा. ना शिष्य रंगविजयजी महाराजे लखी होवानो उल्लेख आपे छे. ए सिवाय एमना संबंधमां विशेष कांई जणायुं नथी. प्रस्तुत कृतिमां व्रजभाषानी काव्य परंपराना प्रबळ संस्कारो देखाय छे. जैन कवि होवाथी पोतानी मर्यादाने कारणे कविए नेम-राजुल जेवां पात्रोने केन्द्रमां राखी लौकिक शृंगारनी पण अभिव्यक्ति करी छे. प्रस्तुत बारमासामा अंते सिद्धस्वरूपर्नु वर्णन छे. ते सिवाय भाग्ये ज जैनधर्मनी कोई संज्ञाओ प्रयोजायेली होय तेथी आ जाणे शृंगारर्नु ज साद्यंत काव्य होय तेवी अनुभूति थाय छे. For Private and Personal Use Only

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