Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-अप्रैल - २०१४ को प्रोत्साहन और पुनर्बलन मिला, उन्होंने इन प्राचीन लिपिवद्ध लेखों को पुनः पढने का प्रयास शुरू किया। लेकिन ई.सन् १८३५-३७ में इस लिपि को सर्वप्रथम पढने का श्रेय पाश्चात्य पुरातत्वविद सर-जॉन-प्रिंसेप को जाता है, जिसने दस वर्ष तक अथक प्रयास कर आखिरकार इस लिपि के सभी अक्षरों को पढने में सफलता हाँसिल की और एक सर्वमान्य वर्णमाला का निर्माण हुआ। इसके बाद तो ब्राह्मी लिपिबद्ध लेखों को एक के बाद एक कर आसानी से पढा जाने लगा। गुजरात में ब्राह्मी लिपि का सबसे प्राचीन नमूना मौर्य सम्राट अशोक के गिरनार शिलालेखों में प्राप्त होता है जो ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी का है। इन शिलालेखों की प्रचुरता से सिद्ध होता है कि मौर्यकाल में इस लिपि का उत्तरी भारत तथा लंका में खूब प्रचार था। सम्राट अशोक ने इन लेखों में तत्कालीन राजाज्ञा, धर्म संबंधी नीति-नियम तथा अहिंसा प्रचारक उद्घोषों को उत्कीर्ण कराया और इस लिपि को 'धम्म लिपि' की संज्ञा दी। जैन ग्रन्थ 'पन्नवणासूत्र' तथा 'समवायांगसूत्र' में अठारह लिपियों का उल्लेख मिलता है, जहाँ इस लिपि का 'बंभी लिवी' के रूप में नामोल्लेख हुआ है। विदित् हो कि इस अठारह लिपियों की नामावली में ब्राह्मी लिपि का नाम सबसे पहले है। बौद्ध ग्रन्थ 'ललितविस्तर में ६४ लिपियों का नामोल्लेख मिलता है, जिनमें 'ब्राह्मी' तथा 'खरोष्ठी' लिपियों का नाम सर्वप्रथम है। 'भगवतीसूत्र' में भी प्रारंभ में ही 'नमो बंभीए लिवीए' कहकर इस लिपि की वंदना की गई है। अतः कहा जा सकता है कि इसका प्रीचीन नाम 'बंभी' लिपि था और उस समय इसका बहुत आदर था। ___ विदित् हो कि खरोष्ठी लिपि के अक्षर चित्रात्मक होने के कारण इन्हें सहीसही पढ-पाना अति कठिन और भ्रामक रहा होगा, अतः इसका चलन अधिक नहीं हो सका । दूसरा एक और प्रमुख कारण यह भी रहा कि यह लिपि अर्बीपर्सियन लिपियों की तरह दायें से बायें लिखी जाती थी, जिसका अनुकरण संभवतः भारतीय पण्डितों के लिए कठिन रहा होगा। आज भी इस लिपि में उत्कीर्ण प्राप्य लेखों को पढने में पुरातत्त्वविद प्रयासरत हैं लेकिन ब्राह्मी जैसी सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। हिंदुस्तान में आज सबसे प्राचीन प्राप्य लिपि अशोक-कालीन ब्राह्मी लगभग ३०० ई.पू. की है। यद्यपि पिपरावा का मटके पर लिखा हुआ लेख तथा बडली का खण्ड लेख ४००-५०० ई.पू. के. हडप्पा तथा मोहनजोदडो की मुद्राएँ १००० ई.पू. की तथा हैदराबाद संग्रहालय के बर्तनों पर उत्कीर्ण ५ चिह्न संभवतः For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84