Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३८-३९ प्रयोजनने विराम आपी नायिकानी स्थिर मनोदशा पर आलेखन करे छे. कार्तिक मासि ते कांमनी रे, राती ताती थई संगे लाल, आतिम रामनी सेवना रे, नीरखी मुझमन उलसे रे, प्रीतम सेवामें रंगे लाल... 11911 प्रियतमाए हवे प्रियतगनी चिंता छोडी दीधी. ते उल्लासपूर्वक भगवान नेमिनाथनी सेवामा मग्न बनी गई. अर्थात् राजुले श्रमण धर्म स्वीकार्यो. अहीं विरहथी उपालंभ उत्पन्न थाय छे. उपालंभमांथी करुणाभाव प्रगट थाय छे. १७ बारमासाना वर्णन बाद आश्चर्य उपजावे तेवी घटना बनी राजुलने प्रियमिलननी कोई आशा न देखाइ कारण के नेमिकुमार योगी बनी गया हता. हवे तो जे रस्ते पति चाल्या ते रस्ते ज पोते चालवु एवं राजुले नक्की करी लीधुं. राजुले वासना उपर विजय मेळव्यो. अहीं पति-परायण स्त्रीनी लाक्षणिकता राजुलना पात्र द्वारा कवि प्रगट करे छे. शीलपालननी चुस्तता, स्वप्नभां पण अन्य पुरुषने न स्वीकारवानी मनोदशा ते काळनी स्त्रीओमां राजुलना पात्र द्वारा प्रगट थाय छे. रामचंद्रजी साथ सीता वनमां गया, हरिश्चंद्र साथै तारामती राणीए राजपाट छोड्, नळराजा साथै दमयंती वनना दारुण दुःखो सहन करवा तैयार थयां आ युगनी मांगने जाणीने ज 'अमृतविजयजी 'ए त्याग, वैराग्य अने धर्मनो उपदेश समावी आ बारमासानी रचना करी छे. राजुलना दीक्षित थवाना समाचार सांभळी भगवान नेमिनाथ (प्रियतम) आसो मारामां संदेशो मोकलावे छे : 'बाधक कारण जिहां नहीं रे, भोग्य अनंत विलासी ... ।।२।। साधक साधन ताव रे, अक्षय अकीड वासो लाल, परमानंद जिहां नहीं रे, नहि विकल्प प्रयासो लाल... । । ३ । । वस्तु स्वरूप स्वभावथी रे, देखी निज परधानें लाल, तेह मंदिरमां आवज्यो रे, मलसूं तव एकताने लाल...।।४।।' For Private and Personal Use Only ज्यां बाधक (अंतराय) कारण नथी, ज्यां साध्य-साधन भेद नथी, ज्यां अनंतकाळ सुधी अविनाशी सुखने महालवानुं छे, ज्यां परम आनंद छे, दुःखनुं नामोनिशान नथी, ज्यां संकल्प-विकल्प ( मोहनाशथी ) कोइ अवकाश नथी, ज्यां पोताना मूळ स्वभावमां (ज्ञाता-दृष्टाभावमां) अनंतकाळ सुधी रहेवानुं छे. ज्यां स्वथी स्वने निहाळवानुं

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