Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
३८-३९
लय टहुको संभळाय छे.
'चिहुं दिशें घनघोर मचावी हो, वीरह न वधारो नाहलीया, गयण धडूके वरसे धारा, आ दादुर मोर किंगारा हो, झबझब झबके चपला चमकारा, आ अबलानें कौंण आधारा' ।।
( मास - ८, क. १, २)
अषाढ मास एटले वर्षाकाळ. आकाश घनघोर वादळोथी आच्छादित थयुं छे. वादळ गर्जना करे छे, वीजळी चमकारा करे छे, चारे बाजु देडका, मोर अने सारंगीना अवाज संभळाय छे त्यारे प्रियतमाने शिवादेवीना पुत्र नेमिकुमारनी अनहद याद आवे छे.
१५
अचानक प्राकृतिक तत्त्वामां आवेला परिवर्तनथी प्रियतमा भयभीत बने छे. तेवा समये ते पोताना प्रियतमनी ओथ इच्छे छे. सामान्य रीते वैशाख अने जेठ मासनी प्रखर उष्णताने ठारवा वर्षानुं आगमन सुखद वर्ताय छे परंतु विरहिणी स्त्रीना हृदयमां कुदरती तत्त्वो विरहनी वेदना वधारे छे. प्रियतमा वलवलतां आक्रोश करतां कहे छे :
'कोई भवनुं वैर संभाली, आ दुःखमां डारी ?' ।। (मास-८, क. ३)
श्रावण : श्रावण मासमां मेघ सरवडानी जेम अचानक वरसीने चाल्यो जाय छे. ( मास - ९, क. १) श्रावणनां सरवडांने विप्रलंभ शृंगारना विरहिणी स्त्रीनी अश्रुधारा अने परणेतरनुं अचानक आवीने चाल्या जवा साथे अपूर्व संयोजन जोई शकाय छे. प्रियतमा पोताना प्रियतमने वरणागी थवानुं सचोट कारण कहे छे :
'हरीतांबर वसुधा धरें, जलधर सुंदर संग,
नीसनेहि थइइ नहीं, कीजे वलणो ढंग' ।। (मास - ९, क. २ )
वर्षाना संग वसुधा हरितांबर धारण करे छे. धसमसती नदीओना जळप्रवाहथी समुद्र पण छलकाय छे, तेम प्रियतम अने प्रियतमाना मिलनथी पूर्णता प्राप्त थशे वो भाव अहीं व्यक्त थयो छे.
For Private and Personal Use Only
भादरवो: भादरवा महिनामां सांबेलाना धारे वरसाद वरसे छे तेथी नदी, वाव इत्यादि जळराशिथी छलकाय छे. अर्थात् प्रियतमाना हृदयमां प्रेमरसनी तलप जागी छे. परंतु समुद्रविजयना नंदन घरमां नथी त्यारे प्रियतमा दुःखी थतां कहे छे :

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84