Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - ३८-३९ वातावरणमां ठंडक होवाथी शरीरनो शणगार अने किंमती वस्त्रो पहेरवा गमे छे.
फागण : फागणमासमां शब्दानुप्रास अलंकार प्रयोजी कवि वसंतना विविध वर्णनो करे छे.
फागुण मासे कंत, जो होइ संगे रे, लाल गुलाल वसंत, खेलीइ रंगे रे। भोली टोली भोर, सरखें साथे रे, होली रमई जोर, हाथो हाथें रे... ||१||
आ कडीओ एक बाजु आपणी फागुनी ऋतुवर्णननी परंपरा साथे संकळाय छे, तो साथे ज व्रजभाषानी परंपरानुं अनुसंधान पण जोवा मळे छे. रंग अबीलगुलाल फाग खेलतां नर-नारीओने जोइ राजुलने नेमिकुमारनी याद सतावे छे. प्रियतमाने पर्वना दिवसो प्रियतम विना पसार करवां कपरां थइ पडे छे.
चैत्र : कविए चैत्रनुं प्राकृतिक अने विरहिणी नायिकानी मनोव्यथानुं मार्मिक वर्णन कर्यु छे.
चैत्रे तरुवर पलटाइजी, चीत्रीत फुली वनरायजी; सवी कुसुमलता महकायजी, रणझण मधुकर गुणगायजी...।।१।। आ एह वखतमा कंतजी, घरे आवीने जुओ वसंतजी, तोरी हृदयकमल विकसंतजी, जो चंद चकोर देखंतजी...।।२।।
चैत्र मासमां वृक्षोना पीळा पांदडाओ खरी पडे छे. नवी कंपळो फटी नीकळे छे. वृक्ष लीलाछम देखाय छ, अर्थात् वृक्षनी कायापलट थाय छे. चारे तरफ वनराजी खीली उठे छे. कुसुमलता सर्वत्र महेकी उठे छे. तेनी सुगंधथी प्रेराइने भ्रमरो रणझण नाद करी मधुर गीतो गाय छे.
सर्वत्र खुशनुमा वातावरण छे. प्रकृतिमा मादकता प्रसरेली छे त्यारे चंद्रने जोइने जेम चकोर, 'तेम प्रियतमने जोइने मुरझायेली प्रियतमा पुलकित थाय, परंतु अफसोस! प्रियतम घरे नथी. कविए अहीं चंद्रने प्रियतम अने चकोरने प्रियतमानी उपमा आपी छे.
वैशाख : वैशाख एटले ग्रीष्मऋतु. आ ऋतुमां शेरडी अने आंबानो मबलक पाक थाय छे. प्रियतमा मधुरा फळोनो आस्वाद करवा पोताना प्रियतमने निमंत्रण पाठवे छे.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84