Book Title: Shrutsagar Ank 038 039
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ मार्च-अप्रैल - २०१४ 'खंड करी आफू अभिलाषजी, प्राणेसर रस भरी चाखोजी' ...||१|| अहीं प्रियतमा द्वारा चाकरी अने पतिभक्तिनो भाव प्रदर्शित थयो छे. प्रियतमा राजुल तळपदी दृष्टांतो द्वारा पोताना प्रियतमने भवोभवना स्नेहनुं स्मरण करावे नव नव भवनो प्रेम किम करी, चूकावो चतुर चित्त लहिइ, उत्तमना तिम छे प्यारजी, जलमां जिम तेलनी धारजी, आथमति छांहडी सारजी, ते तो वड जेटले विस्तारजी (मास-६, क. २) हे चतुर! आपणी नव नव भवनी लांबी प्रीतडीने केम भूलो छो? तमे चित्तमां अवधारो. सूर्यास्त समयनो पडछायो अने जळमां रहेलुं तेल सदा व्यापीने ज रहे छे, तेम उत्तम पुरुषोनो प्रेम क्षणिक न होतां अखंड होय छे. कविश्रीए नायिकाने अहीं शास्त्रज्ञ, समजु अने पतिव्रता चित्रित करी छे. योगी थयेला प्रियतमने प्रियतमा समाज व्यवस्था बतावे छे, जेमां वैदिक धर्मना ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम अने सन्यासाश्रम आ चार आश्रमना भावनो संकेत रहेलो छे. बालक वय भणवा जोगजी, जोवन वये वीलसें भोगजी, वृद्धपणे पाले जोगजी, कहे 'अमृत' अचल अमोघजी (मास-६, क.३) बाल्यवयमा विद्याभ्यास करवो, यौवनवये लग्न करी गृहस्थाश्रममा प्रवेश करवो, गृहस्थाश्रममा रही संन्यासनी तैयारी करवी ते वानप्रस्थाश्रग अने अंते योगी बनवू ते संन्यासाश्रम छे. दरेकनो २५-२५ वर्षनो रामय छे. कविए वैदिक परंपराने अनुसारे गायिकाना भावोने अभिव्यंजित कर्या छे. जेठ : जेठमासनु वर्णन अत्यंत लाक्षणिक छे. ग्रीष्मऋतुमां प्रचुर ताप होय छे. त्यारे वृक्षनी छाया शीतळता बक्षे छे. आ छाया अळगी होवा छतां वळगीने बाथ भीडे छे त्यारे ताप, शमन करे छे. प्रियतमा पोताना प्रियतमने नाम लइने न बोलावतां समुद्रविजयना पुत्र, शामळिया, प्राणजीवन, पातळिया जेवा संबोधनो प्रयोजे छे. व्रजमा राधाए श्रीकृष्ण माटे शामळिया, पातळिया, जशोदानंदन, जेवा शब्दप्रयोगो कर्यां हता. एवा ज केटलांक भाव अने स्नेह स्निग्ध संबोधनोथी राजुलनां हृदयगत भावोने वाचा आपी अषाढ : आ अषाढ मास आव्यो. अषाढना वर्णनमा कविनो तळपदी गुजराती For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84