Book Title: Shravaka Jivan Part 4 Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana View full book textPage 6
________________ धर्मबिन्दु-सूत्राणि * तथा प्रशस्तभावक्रिया * भवस्थितिप्रेक्षणम् * तदनु तन्नैर्गुण्यभावना * अपवर्गालोचनम् ॥ ८७ ॥ ॥ ८८ 11 ॥ ८९ ॥ ९० ॥ * तथा श्रामण्यानुरागः ॥ ९१ ॥. * यथोचित्तं गुणवृद्धिः ॥ ९२ ॥ * सत्त्वादिषु मैत्र्यादियोगः ॥ ९३ ॥ Jain Education International श्लोकाः * विशेषतो गृहस्थस्य धर्म उक्तो जिनोत्तमैः । एवं सद्भावनासारः परंचारित्रकारणम् ॥ १ ॥ * पदंपदेन मेघावी यथाऽऽरोहति पर्वतम् । सम्यक् तथैन नियमाद्धीरश्चारित्रपर्वतम् ॥ २ ॥ * स्तोकान् गुणान् समाराध्य बहूनामपि जायते । यस्मादाराधनायोग्य स्तस्मादादावयं मतः ॥ ३ ॥ " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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