Book Title: Shravak Pragnpti
Author(s): Rajendravijay
Publisher: Sanskar Sahitya Sadan

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Page 176
________________ सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / [171 ] [अङ्गारवनशकटभाटकस्फोटनेषु वर्जयेत् कर्म / वाणिज्यं चैव दन्तलाक्षारसकेशविषविषयम् // 287 // ] अङ्गारवनशकटभाटकस्फोटनेषु एतद्विषयं वर्जयेत् कर्म न कुर्यात् / तत्राङ्गारकमागारकरणविक्रयविषया / एवं शेषेष्वप्यक्षरगमनिका कार्या तथा वाणिज्यं चैव दन्तलाक्षारसकेशविषविषयं दन्तादिगोचरं वर्जयेत्परिहरेदिति // एवं खु जंतपीलणकम्मं निल्लंकणं च दवदाणं / सरदहतलायसोसं असईपोसं च वज्जिज्जा॥२८८॥ [एवं खलु यन्त्रपीडनकर्मनिर्लाञ्छनं च दवदानम् / सरोहदतडागशोषं असतीपोषं च वर्जयेत् // 288 // ] एवमेव शास्त्रोक्तेन विधिना यन्त्रपीडनकर्म निला छनं च . कम दवदानं सरोहदतडागशोषं असतीपोषं च वर्जयेदिति गाथाद्वयाक्षरार्थः। भावार्थस्तु वृद्धसंप्रदायादेव अवसेयः। स चायम्- .. ___इंगालकम्मति इंगाले दहिउं विविकणइ तत्थ छण्हं कायाणं वहो तं न कप्पइ / वणकम्मं जो वणं किणइ -पच्छा रुक्खे छिदिउँ मुल्लेण जीवइ एवं पत्तिगाइवि पडिसिद्धा भवंति। साडीकम्मं सागडियत्तणेण जीवइ तत्थ बंधवहाई बहुदोसा। भाडीकम्मं सएण मंडोवक्वरेण भाडएण वहइ परायगं ण कप्पइ अन्नेसिं वा सगडे बइल्लयवेइ एवमाइ ण कप्पइ / फोडीकम्मं उडत्तणं हलेण वा भूमि फाडेउं जीवइ / दंत

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