Book Title: Shravak Pragnpti
Author(s): Rajendravijay
Publisher: Sanskar Sahitya Sadan

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Page 210
________________ सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / [ 205 ] वेइ करतं नाणुजाणइ मनसैव तृतीयः 3, एवं वायाए 4.5 कारण य 1674 सव्वे नव, उक्तो षष्ठो मूलभेदः / / इदानों सप्तमोऽभिधीयते, ण करेइ मणेणं वायाए कारण य एक्को 38 एवं ण कारवेइ मणाईहिं 3, करंतं णाणुजाणइ अ / 7 / इदानीमष्टमो भण्यते न करेइ मणेण वायाए एको 11, तहा मणेण कारण य , तहा वायाए कारण य ३१एवं न करावेइ 43 करतं नाणुजाणइ 1994 सच्चे विणव / 8 / इदानीं नवमो भण्यते न करेइ. मणेणं 3, न कारवेइ 92, करतं नाणुजाणइ ॐ एवं वायाए वि 445566; कारण वि 84. सव्वे. वि नव नवमों मूलभेदः / 9 / आगतगुणनेदानों क्रियते // . . लद्धफलमाणमेयं भंगाउ भवंति अउणपन्नासं / तीयाणागयसंपयगुणियं कालेण होइ इमं // सीयोलं भंगसयं कह कालतिएण होई गुणणाउ / तीयस्स पडिक्कमणं पच्चुप्पन्नस्स संवरणम् // पच्चक्खाणं व तहा होइ य एस्सस्स एस गुणणाओ। कालतिएण य भणियं जिणगणहरवायगेहिं च // इति उक्तभङ्गकानामाद्यभङ्गस्वरूपाभिधित्सयाह / न करइ न करावेइ य करंतमन्नपि नाणुजापेइ / मणवयकायेणिकको एवं सेसा वि जाणिज्जा॥३३१

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