Book Title: Shravak Pragnpti
Author(s): Rajendravijay
Publisher: Sanskar Sahitya Sadan

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Page 225
________________ [ 220 / सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / प्रतिपक्षयोजना सर्वत्र कार्येति कैवल्ये प्रतिपूर्णे प्राप्ते परमाक्षरे मोक्ष इति / न य संसारम्मि सुहं जाइजरामरणदुक्खगहियस्स। जीवस्स अत्थि जम्हा तम्हा मुक्खो उवादेओ३६० [न च संसारे सुखं जातिजरामरणदुःखगृहीतस्य / जीवस्यास्ति यस्मादेवं तस्मान्मोक्ष उपादेयः // 360 / / ] किंविशिष्ट इत्याहजच्चाइदोसरहिओ अव्वाबाहसुहसंगओ इत्थ / तस्साहणसामग्गी पत्ता य मए बह इन्हिं // 361 // [जात्यादिदोषरहितोऽव्याबाधसुखसंगतोत्र (संसारे) तत्साधनसामग्री प्राप्ता च मया बह्वदानीम् // 361 // ] ता इत्थ जं न पत्तं तयत्थमेवुज्जमं करेमित्ति। विबुहजणनिदिएणं किं संसाराणुबंधेणं // 362 // [ तदत्र (सामग्रयां) यन्न प्राप्तं तदर्थमेवोद्यमं करोमीति / विबुधजननिन्दितेन किं संसारानुबन्धेन // 362 // ] इति निगदसिद्धो गाथात्रयार्थः इत्थं चिन्तनफलमाहवेरग्गं कम्मक्खय विसुद्धनाणं च चरणपरिणामो। थिरया आउ य बोही इय चिताए गुणा हुँति।३६३।

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