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आमानवंदन
'श्रमण सूत्र' 'श्रमण धर्म की साधना का मूल प्राण है । जैन श्रमण का जो कुछ भी श्राचार व्यवहार है, जीवन प्रवाह है, उसका संक्षिप्त स्वरूप दर्शन श्रमण सूत्र के द्वारा हो सकता है । यही कारण है कि प्रति दिन प्रातः और सायंकाल प्रस्तुत सूत्र का दो बार नियमेन पाठ, प्रत्येकसाधु और साध्वी के लिए आवश्यक है । यह जीवन शुद्धि और दोष प्रमार्जन का महा सूत्र है । श्रमण साधक कितना ही अभ्यासी हो, परन्तु यदि उसे श्रमण सूत्र का ज्ञान नहीं है तो समझना चाहिए कि वह कुछ नहीं जानता । श्रमण सूत्र का ज्ञान, एक प्रकार से साधक के लिए अपनी आत्मा का ज्ञान है। ____जो सूत्र इतना महान् एवं इतना उच्च है, दुर्भाग्य से उस पर अच्छी तरह लक्ष्य नहीं दिया गया । सूत्र पाट केवल रट लिए जाते हैं, न पाठ शुद्धि ही होती है और न अर्थ ज्ञान । अोषसंज्ञा के प्रवाह में पड़कर श्रमण सूत्र का रूप इतना विकृत कर दिया गया है कि देखकर हृदय में महती पीड़ा होती है । ___ मैं बहुत दिनों से इस ओर कुछ लिखने का विचार करता रहा हूँ। सामायिक सूत्र लिखने के बाद तो मुझे साधुवर्ग की ओर से भी प्रेरणा मिली कि ऐसा ही कुछ साधु प्रतिक्रमण पर भी लिखा जाय । मैंने कुछ लिखा भी । और मेरा जब यह लेख व्याख्यान वाचस्पति श्रद्धेय श्री
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