Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 11
________________ २ ) प्रस्तावना करता । इसी प्रकार इस नयकी दृष्टिसे स्थापनास्पर्श, बन्धस्पर्श और भव्यस्पर्शका निषेध जानना चाहिए। यहां यद्यपि सूत्रगाथामें ऋजुसूत्र के विषयरूपसे स्थापना स्पर्शका निषेध नहीं किया है, पर स्थापना ऋजुसूत्रका विषय नहीं है, इसलिए उसका निषेध स्वयं ही सिद्ध हैं । शब्दनय नामस्पर्श, स्पर्शस्पर्श और भावस्पर्शको स्वीकार करता है । इसका कारण बतलाते हुए वीरसेन स्वामी कहते हैं कि भावस्पर्श शब्दनयका विषय है, यह तो स्पष्ट ही है । किन्तु नामके विना भावस्पर्शका कथन नहीं किया जा सकता है, इसलिए नामस्पर्श भी शब्दनयका विषय है । और द्रव्यकी विवक्षा किये विना भी कर्कश आदि गुणोंका अन्य गुणोंके साथ संबंध देखा जाता है, इसलिए स्पर्शस्पर्श भी शब्दनयका विषय है । आगे स्पर्शनामविधान आदि चौदह अनुयोगद्वारोंका मूलमें कथन न कर स्पर्शनिक्षेप आदि तेरह निक्षेपोंका ही स्वरूप निर्देश किया है जो इस प्रकार है -- नामस्मर्श- - एक जीव, एक अजीव, नाना जीव, नाना अजीव, एक जीव और एक अजीव, एक जीव और नाना अजीव, नाना जीव और एक अजीव, तथा नाना जीव और नाना अजीव; इनमें से जिस किसीका भी ' स्पर्श' ऐसा नाम रखना नामस्पर्श है । स्थापनास्पर्श - काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोतकर्म आदि विविध प्रकारके कर्म तथा अक्ष और वराटक आदि जो भी संकल्पद्वारा स्पर्शनरूपसे स्थापित किये जाते हैं वह सब स्थापनास्पर्श है । द्रव्यस्पर्श - एक द्रव्यका दूसरे द्रव्यके साथ जो सम्बन्ध होता है वह सब द्रव्यस्पश है । सब मिलाकर यह द्रव्यस्पर्श ६३ प्रकारका है, क्योंकि छहों द्रव्योंके एकसयोगी ६, द्विसंयोगी १५, त्रिसंयोगी २०, चतुःसंयोगी १५, पञ्चसंयोगी ६ और छहसंयोगी १, कुल ६३ संयोगी भङ्ग होते हैं । एकक्षेत्रस्पर्श- जो द्रव्य अपने एक अवयवद्वारा अन्य द्रव्यका स्पर्श करता है उसे एकक्षेत्रस्पर्श कहते हैं । जैसे एक आकाशप्रदेश में अनन्तानन्त पुद्गलपरमाणु संयुक्त होकर या बन्धको प्राप्त होकर निवास करते हैं । अनन्तरक्षेत्रस्पर्श- विवक्षित क्षेत्रसे लगा हुआ क्षेत्र अनन्तर क्षेत्र कहलाता है । कोई द्रव्य विवक्षित क्षेत्र में स्थित है वह अन्य द्रव्य उससे लगे हुए क्षेत्र में स्थित है । ऐसी अवस्था में इन दो द्रव्योंका जो स्पर्श होता हैं वह अनन्तरक्षत्रस्पर्श कहलाता है । इसी प्रकार जो द्विप्रदेशी आदि स्कन्ध होते हैं उनका दो आकाशप्रदेशों आदिमें निवास करनेपर उन स्कन्धों में रहनेवाले परमाणुओं का भी अनन्तरक्षेत्र स्पर्श घटित कर लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जहां क्षेत्रका व्यवधान न होकर दो द्रव्योंका स्पर्श होता हैं वहां यह स्पर्श घटित होता है । देशस्पर्श- एक द्रव्यके एकदेशका अन्य द्रव्यके एकदेशके साथ जो स्पर्श होता है उसे देशस्पर्श कहते हैं । यह देशस्पर्श स्कन्धों के अवयवोंका ही होता है, परमाणुरूप पुद्गलोंका नहीं; क्योंकि, परमाणुओंके अवयव नहीं उपलब्ध होते; यदि ऐसा कोई कहे तो उसका यह कथन उपयुक्त नहीं है, क्योंकि परमाणुका विभाग नहीं हो सकता इस अपेक्षा उसे अप्रदेशी कहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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