Book Title: Shatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 18
________________ (iv) सम्बन्धी समस्त सामग्री का पुनरावलोकन सहित स्वतंत्र संकलन और पारिभाषिक शब्द सूची को संकलित कर प्रकाशित करना आवश्यक है । किन्तु उनकी इच्छानुसार विधि अनुकूल नहीं रहा । आवश्यक ऐतिहासिक व विषय-परिचय सम्बन्धी जानकारी तथा पारिभाषिक शब्दकोश को संकलित कर उसकी एकधा प्रस्तुति का कार्य विलम्बित में ही सही डॉ.हीरालाल जैन के जन्म शताब्दी वर्ष में मुनिश्रेष्ठ उपाध्यायश्री ज्ञानसागर जी की प्रेरणा और प्रकाशन सम्बन्धी निर्देशानुसार पूरा हो रहा है । षट्खंडागम के सम्पादन और प्रकाशन व्यवस्था के दौर में शास्त्रोद्वार के लिये श्रीमंत सेठ सितावराय लक्ष्मीचंद के सात्विक दान को डॉ.जैन ने भविष्य के प्रति जिस विश्वास और आशावादी दृष्टिकोण से सराहा है। यहां उनके कथनांश को उद्धृत करना आवश्यक लगता है । “वे (सेठ लक्ष्मीचंद्र) गजरथ महोत्सव कराने जा रहे थे कि मेरे परम सुहृत् बैरिस्टर जमनाप्रसाद जैन ने इटारसी परिषद के अधिवेशन के समय उनकी सद्बुद्धि को यह मोड़ दिया। गजरथ आज भी चलाये जा रहे हैं । और उनमें अपरिमित धन-व्यय किया जा रहा है । पाठक विचारकर देखें कि आज दान की प्रवृत्ति किस दिशा में सार्थक है"। गजरथ पर ज्ञानरथ को वरीयता देने वाले धनपति आज भी कम नहीं हैं । दान की प्रवृत्ति सार्थक दिशा में यथेच्छ मुड़ी तो डॉ.जैन द्वारा निर्दिष्ट कार्य सम्पूर्ण होकर प्रकाशित होने में अब और विलम्ब नहीं होगा। ___ धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत और भूतबलि को वे ही सिद्धांत सिखाये थे जो उन्हें आचार्य परंपरा से प्राप्त हुये थे और जिनकी परंपरा महावीर स्वामी तक पहुंचती है । पुष्पदंत और भूतबलि ने उन सिद्धान्तों को शौरसेनी प्राकृत में सूत्रबद्ध किया । आचार्य वीरसेन ने संस्कृत-प्राकृत में इसकी विस्तृत टीका लिखी जो पूर्व-परंपरा की मर्यादा को लिये हुये हैं। षट्खंडागम के छै खंड जीवट्ठाण, खुद्दाबंध, बंधस्वामित्वविचय, वेदना, वर्गणा और महाबंध हैं। इन विभागों को, धवलाटीका प्रस्तुत करते हुये, आचार्य वीरसेन ने आचार्य भूतबलि की मर्यादा को यथारूप बनाये रखा है । डॉ.हीरालाल जैन ने इन्हीं छै खंडों की सामग्री को सोलह पुस्तकों में वीरसेन की मर्यादा के अनुकूल विवेचन करते हये विशिष्ठ व्याख्या, हिन्दी अनुवाद, पांडित्यपूर्ण टिप्पणी और पाठालोचन के सिद्धान्तों पर आश्रित पाठ-शुद्धि सहित प्रस्तुत किया है। प्रत्येक पुस्तक में ऐतिहासिक प्रस्तावना के साथ उनकी शास्त्रीय भूमिका महत्वपूर्ण है । इस महत्वपूर्ण प्रस्तावना में आचार्य वीरसेन की विषयसंगति की मर्यादा का पूर्णत: निर्वाह हुआ है । अनेक विषयों पर वैज्ञानिक दृष्टि से विचार

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