Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
, हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि बच्चेके शरीरमें विनलीके अधिक होनेसे उसकी मुट्ठी बंधी रहती है और बंधी रखने में अवश्य ताकत लगानी पडती है लेकिन वृद्धावस्थामें जब कि विनली कम होमाती है उस समय वृद्धको मुठ्ठी बांधकर रखनेमें प्रयत्न करना पड़ता है और खुली रखने में किसी प्रकारका कप्ट नहीं हो:। वह दूसरी बात है जो कि वृद्धावस्थामें ठण्ड आदि लगनानेसे शरीरके अवयव सिकड जाते हैं ।
___ मित्रो ! इससे मन्त्री प्रकार हमारी समझमें आगाता है कि शान्त रहना . आत्माका स्वभाव है और क्रोधादि करना ये औपाधिक हैं।
साहित्यमें रसों का वर्णन करते हुए प्रथम शृङ्गार रसका वर्णन किया है। पतिपत्नीकी रतिके समय जो परस्परसकी वृत्ति है उसे अङ्गाररस कहते हैं।
इसके अनन्तर वीर रसको बताया है "उत्साहात्मा भवेद्वीरः" जो आत्मा वीर. रसापन्न होती है वह उत्साहयुक्त होती है । पुनः शोकमे उत्पन्न होनेवाले करुणारसको बताया है तदनन्तर वर्णित हास्य रसकी उत्पत्ति चेष्टादिके विकृत करनेसे होती है। असंभव सदृश वस्तुके देखने से या सुननेसे अद्भुत रस उत्पन्न होता है । भयानक वस्तुओंके देखनेसे भयानक रसकी उत्सत्ति होती है तथा क्रोधादि कारणोंके आनानेसे रौद्र और जुगुप्साके कारणोंके देखनेसे वीभत्स रसका उत्पाद होता है। अन्तमें सम्यग्ज्ञानसे है उत्पत्ति जिसकी ऐसे शान्तिरसकी उत्पत्ति होती है।
इस प्रकार आत्मालो जो आकुलता रहित करके शान्तिके साम्रानमें बैठाते हैं ऐसे ही साहित्य ग्र-थ प्रशंसनीय और गणनीय हैं ऐसे जैन साहित्य अन्योंकी संख्या कितनी है यद्यपि यह अभीतक किसीसे विदित नहीं है तथापि ऐसा विश्वास अवश्य है कि उनकी संख्या बहुत बड़ी है और उनका महत्व बहुत चढ़ा बढ़ा है।
____मन्त्ररूर मैन साहित्य भी अपनी शानीमें एक ही है । भक्तामरके मन्त्रोंका आराधन करके और प्राप्त करके अब भी मनुष्य बहुत विचित्र २ कार्य करते दिखलाई देते हैं स्वयं श्रीमानतुंगाचार्य मिनको कि १८ कोठोंके अन्दर बन्दकर दिया गया था मन्त्रोके प्रभावसे ताले अपने आप खुलगये और मुनिमहारान बाहर आगये । अब भी मन्त्ररूप साहित्यमें जो शक्ति है वह संस्कृत साहित्यमें नहीं और जो संस्कृत साहित्यमें
शक्ति है वह हिन्दी साहित्यमें नहीं है। जैन संस्कृत साहित्य भी उसी प्रकार समुन्नत है . जैसे कि जैन मन्त्र साहित्य कुछ ही समय पहिले । बादशाह अकबर हीरविनय यतिको .. अपनी शिक्षाके लिए अपने पास रखते थे और उनसे हरएक कार्यमें सम्मति लेते थे । . बादशाह अकबरकी सभा ५ खण्डोंमें विभक्त थी, श्रीहरिविजय यति पहिली
श्रेणीमें थे तथा और भी तीन जैन विद्वान् ५वीं श्रेणीमें थे। महाराज अकबर जैन सिद्धा