Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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द्रव्योंकी तरह कायशला नहीं है। क्योंकि आकाश द्रय अखंड है। इसीलिये लोकाकाशमें विद्यमान काल द्रव्य के द्वारा अलोकाकाशका भी परिणमन .. होता रहता है। जिस तरह आकाशं द्रव्य स्वप्रतिष्ठित है तथैव कालद्रव्य के परिणणन में भी अन्य द्रव्य सहकारी नहीं है।
इस प्रकार प्रमाणिक युक्तियों के बलसे काल द्रव्य सिद्ध हो गया जो कि द्रव्योंकी: द्रव्यतामें प्रधान कारण हैं। अस्तु ।
'' इस तरह अजीव द्रव्यकी पांच जातियां सिद्ध हो गई अधिक नहीं। क्योंकि उनके लक्षण तथा प्रधान गुण भिन्न भिन्न हैं । किन्तु जीव द्रव्यकी अन्य कोई जाति नहीं है । कारण यही है कि समस्त जीवोंके लक्षण, गुण, स्वभाव सामान्यतया समान ही है.. अतः कहना पड़ेगा कि द्रव्य ६ छह हैं। समस्त जग जनाल : इन्हीं छह विभागोंमें विभक्त है। अतएव द्रव्यं न तो सात, आठ आदि- अधिक हैं और न छहसे कम ही हैं इसका कारण यह है कि इन छह द्रव्योंके सिवाय अन्य कोई पदार्थ शेष नहीं रहा. इस लिये तो अधिक मानना व्यर्थ है । और यदि इन छहसे कम स्वीकार करें तो संपूर्ण पदार्थ न आ सकेंगे । अतएव जगतमें द्रव्य छह ही हैं। . . .... ..
. ___ माननीय महाशयों ! यद्यपि षट् द्रव्यकी आवश्यक्ता तथा सिद्धि, संक्षिप्त रूपसे. भी बहुत संकुचित है क्योंकि यह विषय समुद्र के समान गंभीर तथा, घुमेरुके समान उन्नत अथवा आकाशके समान विस्तृत है । किन्तु आपके समयानुसार यही पर्याप्त होगा। क्योंकि विज्ञ महोदयोंके लिये सारांश ही प्रमोददायक होता है। अतएव लेखनीका पर्यटन इसी स्थलपर समाप्ति भूमिको प्राप्त करके कृतकृत्य होता है।
... ... आवेदक-अजितकुमार शास्त्री, बबई । ... सिद्धांत ग्रंथ श्री गोम्मटसारजीकी बडीटीका ।
. श्रीमन्नेमिचंद्रनी सिद्धांतचक्रवर्ती कृत मूल प्राऊन गाथा व संस्कृत...छाया . दो बड़ी टीकाओं सहित व स्व० ० टोडरमलजी कृत बड़ी हिन्दी टीका सहित यह ग्रंथराज छह खंडोंमें विभक्त किया गया है। पहला दुसरा खंड जीवकांड १७) तीसराचौथा,
पांचमा कर्मकांड २४).रुऔर छठवा लब्धिप्तार क्षपणसार : १२) अब ग्रंय पूर्ण हो गया ... है. अतः जिन. २ महाशोंने १ या २ या ३ खंड मंगाये हैं उन्हें ४-५-६ खंड मंगाकर
अपना ग्रंथ अवश्य पूर्ण कर लेना चाहिये । अधूरे ग्रंथसे कुछ लाम नहीं। यह ग्रंथ प्रत्येक ____ मंदिर, पाठशाला व ग्रहस्यके घर में रहना चाहिये । छह खंड है साथ मंगानेवाओं को ५१)में - रु० दे दिया जायगा । पृ० संख्या ४.१:०० व श्लोक संख्या अनुमान १,२९०००के हैं।
मैनेजर दि जैन पुस्तकालय -सूरत।
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