Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 92
________________ ..:.. ".. E: :. . . . -: अन्याकृत्यमलोवरो भवयमः कुर्वन्माति तापसे । ... . तत्वा चित्यमतीशिता तबशितः स्तुत्योरुवाणि पुनः ॥ जिष्णूतष्फुटकीर्तिवारवशमा श्रेयोऽभिधे मण्डने । धीर स्थापय मा पुरो गुरुवर त्वं वर्धमानो रुधी ॥ - खंडकाव्यमै क्षत्रचूडामणि नामक ग्रंथ है इसमें जो महत्त्व है. यह किसी कविको नहीं मिला है। इसमें अश्लोक मय जीवधरं अनुपम विचित्र चरित्र और अश्लोकोंमें नीति है । वास्तवमें ऐसा नीतिशास्त्रका काव्य शायद ही संस्कृत काव्योंमें हो नव कि: हम इसका स्वाध्याय करते हैं, तो यह मिलता है जिसको किं. प्रातःकाल पढ़ना चाहिये। ... जीवित्तान्तु पराधीनाजीवानां मरणं वरं । : मृगेन्द्रस्य मृगेन्द्रत्वं वितीर्ण केन कानने। ...... अब हम आपको कालिदासके रघुवंशकी तथा क्षत्रचूड़ामणिकी नीतिका मिलानः कराते हैं। . .. ..: : " : प्रजानां विनयाधानाद्रक्षणाद्भरणादपि। स पितः पितरस्ताषां केवलं. जन्म हेतवः ॥.. रात्रिंदिवविभागेषु यदादिष्टं महीक्षितां। ....... तसिषेष नियोगेन, स विकल्प पराङ्मुखः। .. स वेलावप्रवलयां, परिखीकृत सागरं । . : .. : अनन्यसासनमुर्वी, शशासक महीमिय'॥ (रघुवंशे). सुखदुःख प्रजाधीने, तदाभूतां प्रजापते। . प्रजानां जन्मवर्ज हि सर्वत्रपितरो नृपाः॥.. रात्रिंदिवाविभागेष्ठ नियतो नियति व्यधात् ।. . . . कालातिपातमात्रेण, कर्तव्य हि विनश्यति ॥ ..... प्रयुद्धेऽस्मिन् मुवं कृत्स्ना रक्षयत्येव पुरीमिव ! ... . राजन्वती भूरासीदन्वर्थ, रत्नसूरपि। (क्षत्रचूड़ामणि) : .... . . मिलानकर देखिये कितना रस, लालित्य, सरलता क्षत्रचूडामणिमें टपकती है। "गद्यकाव्य" भी एक, काव्यका भाग है यद्यपि हृद्य हृद्य गद्यके दृष्टांतको पूर्वमें दे चुके हैं : फिर भी "गचिंतामणि" कादम्बरीसे पदलालित्य, सरसतामें उत्तम है । कादम्बरीमें वृथा। ही मसिद्ध शब्दोंको देकर, कठिनता बढ़ा दी है। हम ही इसबातको नहीं कहते । वल्कि . . एक निरपेक्ष प्रोफेसरका भी ऐसा ही मत है। हम उसके वाक्योंको नीचे उद्धृत करते हैं . . ...... c :

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