Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 94
________________ इस बातको हमारे नन्दनीय सामायिवर्ग तथा मष के विद्वान साध्याप कर : - अपने क्षेत्रों में विश्वस्तिको वो सकेंगे। मैं अब पुण्याश्रवाद उत्तमोत्तम भनकायोंकी उत्तमता बतलाने के लिये समय नहीं रखता। फिर मी कायोत्तमः पार्थ राशुवाटिकांके कुछ चुने हुए कुसुमोंसे भाप सज्जनोंपर वर्षा करताहुभा इस प्रकरण को सान्त करूंगा। .: वास्तबमें कविवर मुवीसजीने. श्री पार्थ राय पुराणको काव्य दृष्टयां अति मनोहर काव्य बनादिया है । दृष्यांतके लिये हम उनका साधे का समय देते हैं.:..भुवनतिलक भगवंत, संतज़न कमल दिवापर। .. . जगतजंतु बंधच अनंत, अनुपम गुणसांयरः ॥. . . . रागनाग भयमंत, दूत-उच्छेपन वलि अति। .. रमाकंत अरहंत, अतुल जसवंत जगतपतिः ॥ . . तथा च-विमलवोधदातार, विश्व विद्या परमेसर। ... - लछमीकमलकुमार, मार-मातंग-मृगेसर ॥ . ., · मुखमयंक अवलोकि, रंक रजनीपति लाजै . " नाममंत्रपरताप, पाप पत्नग डरि भाजै ।।. क्या ही आदरणीय तां आलंकारिकाभूषणों से सज्जित है । प ठक क्षमा १९, हा इन कविकी इस लेखनशैलीकी उत्तमताको देखकर आश्चर्य होता है तथा हम इसी पुराणके और श्लोक कुछ देंगे जिपसे कि इनकी विद्वत्ताका पूर्ण पता टगै: जय अश्वसेन कुलचंद्र जिन, संक्र चक्र पूजित चरन । ... . . . . तारो अपार भवजलधिते, तुम तरंड तारन तरन ॥ ... . . . वाघ सिंह वस होयहि, विषम विषधर नहिं डं। .. भूत प्रेत बेताल, व्याल वैरी मनं संके॥ . : साकिनि डाकिनि अगानि, चौर नहि भय उपजावें।... ... रोग सोग सब जाहि विपत नेरे नहिं आवै । (पा० पु०) : पाठ वृद, कविकी इस अनुपम कविता सेनालंकार, अर्थालंकारको देखकर गा. नहीं कह सर्वते कि जैनेंतर काय?में ऐसे पुराणात्न उपहात होंगे ? अब इन्हीं कविका बनाया हुआ जैनशता" ग्रंथ है। इसकी उत्तपताका वर्ण र बया करें यह हिन्दी में पयः मय अत्यंत काय है जिनकी कि कुछ बानगी हम आपको देते हैं. ....... .. चितवत वदन, अमलं चंद्रोपम, तजि चिंता चित होय अकामी। त्रिभुवन चंद पाय तपं चंदन, नमत चरन चंद्रादिक नामा।..

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