Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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"गुण विचार श्रृंगार वारे उद्दिम उदाररुख । करुणा कम रस रीति, हॉल हिरदै उछाह सुख । अष्ट कर्मदल मलन, स्ने बरते तिहि थानक । तन रिलेच्छ दीमत्स, बन्द दुख दशा भयानक । । अर्द्धन अनंत बल चितवन, शांत सहज वैराग ध्रव । नवरस विलास परकाश तब, जब सुबोध प्रगट हुव ।
पाठक, मिस तरह जेनेतर कवि श्रृंगारन विषय पर ही कविता रचकर सुकवि बननेका दावा करते हैं। किन्तु हमारे कविश्रेष्ठ श्रीयुन बनारसीदासनीने उपयुक्त पद्यमें आत्मामें ही नवरस अति संर रीत्या घटिन किये हैं। पर. बृह्म त्माका यह नवरस युक्त अपूर्व चितवन भविद्वानोंको अभूतपूर्व आनन्दमय बनाता है।
ऐसी मैन कवियोंकी अनुम्म सुन्दर ३ विना क्या अजेन कायों में मिल सकती है। हम इन्हीं कदिशृष्ठकी कविता ऐसी पेश करते हैं कि समस्त हिन्दी संभारमें इस दंगकी कविता नहीं मिलेगी।
भगवान पश्चाय और सुरश्च सथकी स्तुति में आपको
(सर्वहस्वाक्षर) मनहरण करम भरम जग तिमिर हरन खग।
उरगल खल पा शिव मग दरसि। निरखत नयन भविक जल वरपत।
हरषत अमित भविक जन सरसि ॥१॥ मदन कदन जित परम धरम हित।
सुमिरत भगत भगत सब डरसि। सगल जलद तन मद सपत.फन ।
कमठ दलन जिन नमत बनरसि ॥२॥
(सचे हृस्वकारान्त) पट्पद सकल करम खल दलन कमठ शठ पवन कनक नग । धवल परम पद रमन, जगत्त जन अमल कमल खग। परमत जलधर पवन, सजल धन समतन समकर । पर अघर जहर जलद, सकल जननत भव भय हर ॥ यम दलन नरक पद छयकरन, गम अतुट भव जल तरन। वर सवल मदन वन हरद हन, जय जय परम अभय करन ॥३॥ .