Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 100
________________ (४१) ... .. अब यहाँ प्रश्न हो सकता है काव्य क्या वस्तु और क्या लक्षण है ? तो एक हिन्दी परिमापासे विदित होता है कि-"परस्पर एक दुसरेको सहायता चाहनेवाले तुल्यरूप पदाथोंका एक साथ किसी एक साधनमें लगा देना? कान्य कहलाता है। इससे संस्कृत भाषाके । काव्य सहित तरलता, माधुर्य, रसाधिस्यता, मनोहरता, पदयोगना, अर्थगढ़, मक्षर अर, . भाव प्राचुर्य, कांति, प्रसन्नतादि गुण समझना चाहिये। . . इसलिये कविकुअरोंने काव्यका विलक्षण लक्षण विरोचना और गम्भीरतापूर्वक . यही किया है कि . चमत्कृतिजनकतावच्छेदकं धर्मवत्वं काव्यत्वम्।" . अर्थात-मनुष्य के हृदयको चमत्कार उत्पन्न करनेवाला धर्म ही काव्य कहलाता है। अथवा-"रमणीयताप्रतिपादकार्थशब्दः काव्यम् ।" . ... अर्थात-उत्कृष्ट तथा मनोहरताका प्रकट कानेवाला शब्द काम है, क्योंकि शब्द रमणीयता कान्यकी वाह्य छटावलरी है। प्रथम तो शब्द सौन्दर्य ही सहृदय हृदयी मानवोंको काव्य पढ़नेके लिये शीघ उत्सुक बना देता है । पश्चात रस, मार, तथा अकारादि मानस सरोवर में स्वकीय कास्य कविता कलिकाका विकाप्त करते हैं तथा काव्यका, लक्षण इस प्रकार भी करते हैं कि: चतुरचेतश्चमत्कारि कवेः कर्मकाव्यम् । ___ अर्थात-बुद्धिमान पुरुषों को चमत्कार उत्पन्न करनेवाला कविका कर्मकाव्य शब्दसे. . : व्यवहृत किया जाता है। मपया-साहित्यदर्पणकारने इस प्रकार लक्षण किया है कि-.. "वाक्य रसात्मकं काव्यम्" अर्थात इस शृंगार, वीर, आदि नवों ही रसोंसे युक्त काव्य कहा जाता है। यद्यपि यह लक्षण सर्व जगह व्याप्त नहीं होता है, तथापि यत्र कुत्र स्थानमें सुगंठित होता है, क्योंकि विना अलंकारसे, और निर्दोष विना काव्य श्रव्य नहीं होता है इसलिये बाग्मट कविने इस प्रकार लक्षण किया है कि: "शब्दार्थों निर्दोषौ सुसगुणौ प्रायः सालङ्कारौ काव्यम्" .. ... यहीं " काव्यप्रकाश " कारने लक्षण किया है कि- . . " तददोषौ शब्दार्थो सगुणी अनलकति पुनः कापि" .. ___ अर्थात वाक्यार्थ पदादि दोषोंसे रहित, अलंकारों से युक्त, औदार्य, काति, माधु- . . यदि गुणों से युक्त शब्दार्थ काव्य कहा जाता है, क्योंकि रसात्मक वाक्योंके होनेपर मी . सौन्दर्यादि गुणों से रहित और सदोष होनेसे काव्य प्रशलाको प्राप्त नहीं होता, अतः उक्त .. क्षों से युक्त ही सत्काव्य होते हैं। तथा पदलालित्य, अर्थगौरखता विषयगृहता, रस पूर्णता, सुन्दरता, हत्यरोचकता, और शान्तता आणि गुणों से युक्त काव्य है तो जैन काब्ध है।

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