Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 101
________________ ... काव्यके मुख्यतया तीन भेद हैं परन्तु इनके भावान्तर बहुत भेद हो जाते हैं। वे. भेद इस प्रकार हैं कि गद्यपद्यमित्रैश्यं विविधा अर्थात् गद्यकाव्य, पद्यकाव्य, और: गअपमिश्निन, जैसे यशस्तिलक, जीवन्धर चम्पू आदि लेकिन यह सब कार निषि होनेपर ही श्रव्य होते हैं, क्योंकि एक कविका वचन है कि "श्रव्यं भवेत्काव्यमदूषणं यन्न निर्गुणं कापि कदापि मन्ये । उत्कोरका स्थात्तिलकाच्चलाक्ष्याः कटाक्षभावैरपरे न वृक्षाः ॥ १॥ ........ ....... (धर्मशमाभ्युदय ) अर्थात्-निषिकाव्य श्नव्य होता हैं, निर्गुणं कभी नहीं, ऐसा मैं मानता हूं, जैसे कामनीके कटाक्षों से तिलक नामका वृक्ष कलियों से युक्त होता है, और दूसरे वृक्ष नहीं कोरकित होते. । इसलिये निपि काव्य मुकाव्य और श्राप होते हैं, और ऐसे ही काव्यों द्वारा बास्तवमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्षकी प्राप्ति होती है। क्योंकि काव्य कान्यकुंभमें, धर्म, अर्थ, काम मोक्षके लिये, अनर्गल अनावृत कपाट द्वार हैं । जो मनुष्य जिस परंतुकी इच्छा करता है, उसके काव्य कुंनमें सरलर त्या प्रवेश हो जाने से इच्छिा पदार्थकी सिद्धि हो जाती है क्योंकि किसी. कविके ये वचन हैं कि वे महारमा धन्य हैं तथा उन्होंका यश सदा के लिये स्थिर हैं. कि जिन मानवोंने काव्य कनक कटोरियों का बनाया है, व उनमें जिन महानुभावोंकी किया गाथा गाई गाई है, वे पुण्यवान, यशस्वी, कीर्ति कौमुदीके कौमुदीश कहलाते हैं । काव्य, कविता, जनताकी विद्वत्ताकी इयत्ता; सहृदयता, चतुरता, धार्मिकता, रचनासुन्दरता, तथा उपम उपमेय इत्यादि भाव उसकी प्रतिमा पर प्रतिमासित कर देती है। काव्यके लक्षणानुसार पदलालित्य, सुदरता, रोचकता, मावाम्मीरता, मधुरता, अनिर्वचनीयताके साथ हुआ करती है। इसलिये मनुष्य अपने. २. अमीष्ट पदार्थोम सलग्न हो अभीष्ट सिद्धि प्राप्त करते हैं। फल भी इसका यही है कि काव्यं यशसेऽकृते व्यवहारविधेशिवेतरक्षतये । सद्यः परनिर्वतये कान्तासंमिततयोपदेश युजें ॥ १ ॥ (काव्यप्रकाश) अर्यात-काव्य यश-कीर्तिके लिये, व्यवहार विधि, अकल्याणके नाशार्थ, शत्रुनिवागोर्थ, कांतासमित. उपदेशके हेतु-निमित्त किया जाता है, इससे यह तात्पर्य है कि श्री रामचंद्रादिकी तरह प्रवर्तना चाहिये रावण आदिकी तरह नहीं, कीर्ति आदि पूर्वोक्त गुणोंकी प्राप्ति, और व्यवहारादि दक्षता इसीसे होती है, इसीलिये हमारे प्राचीन कवीश्वर और कवि भाचार्योने काव्यों का प्रणयन तथा उपयोग किया। अतः पुरातन कालमें हिंसा, हीनता, हास्य, हिचक, हास, हेना, (अपमान ) हुवाद और हठता. आदि हेय दुगुणोंको जड़मूलसे उखाड़कर महिंसा, हर्ष, हित, हित, हिम्मत, होम इत्यादि हित करनेवाला काव्य कमलाः

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