Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 114
________________ .. महानुमाव ! विचारें कि कैसी भद्दी कल्पना है कि तैरनेके घड़े, और कविने अमृतकलशकी उपमादी है / तथा मृतको अमृत रस देकर सदा जीवित ही कर दिया है। . कवि हरिश्चन्द्र"कपालहेतोः खलु लोलचक्षषो विधिः व्यधात पूर्णसुधाकर विधा। विलोकतामस्थ तथा हि लांच्छनच्छलेन पश्चात् कृतसीवनवणम् // . . . . . ..... (धर्मशर्मा०): ... अर्थात्-ब्रह्माने राज्ञीके कपोलमंडल बनाने के लिये पूर्ण चंद्रमाके दो टुकड़े कर, दिये, यदि नहीं तो देखिये, कि करके ज्यानसे टुकड़े कर पीछे सीवनका व्रण ही मालम होता है, चंद्रकलङ्कपर उत्प्रेक्षा की है। .. .. :. ... .. हृतसारंभिवेन्दुमण्डलं दमयन्ती वदनामवेधमा / .. कृतमध्यविलं विलोक्यते धृत गम्भीर खती खनीलियः॥ (नैषघ) . . . अर्थात् ब्रह्माने दमयन्तीका मुख बनानेके लिये हृतसारकी तरह चंद्रमा, गहरे गड्ढे व आकाशकी नीलिमासे युक्त अथवा मध्यमें किये विलकी तरह दिखाई देता है। अर्थात-दमयंतीका मुख स्वच्छ है। .. कवि हरिश्चन्द्र-ॐ शब्दकी कल्पना"इमामनालोचनगांचरां विधिविधाय सृष्टेः कलशार्पणोत्सुका। लिलेख वके तिलाङ्कमध्ययो वोमिषादोमिति मंगलाक्षरम् // धर्मशर्मा) . अर्थात-सृष्टिंकी रचना के बाद कलश अर्पण करने में उत्सुक ब्रह्माने अदृष्टिगोचर राज्ञीको बनाकर रानीके मुख गत तिलक चिहके मध्यमें भुकुटीके वहानेॐ ॐ यह मङ्गलाक्षरः लिख दिया ! अर्थात् भृकुटीको आकार प्रायः ॐ सरीखा होता है। प्रकान्तरसे उदीरिते श्रीरतिकीर्तिकान्तिभिः श्रयाम एतानिति मौनवान्विधिः / लिलेख तस्यां तिलकामध्ययोः भ्रुवोर्मिषादिति संगतोत्तरम् // अर्थात लक्ष्मी, रति, कीर्ति काति, आदि गुणोंने ब्रह्माके पास जाकर भर्ती (Application )की, इसको पुनकर मौनी ब्रह्माने तिलकाकः मध्यमें भृकुटीके बहानेसे ॐ यह संगतोन्तर लिख दिया। अर्थात् ॐ स्वीकारार्थक है / पाठकः / इत्यादि उपयुक्त. दृष्टांतोंसे नान सकते हैं कि, पदलालित्य, ओज, सौन्दर्य जैन काव्योंमें विशेष है / इस. शोककी कराना विचिन्न है। ऐसी कल्पना मच्छे 2" कवियों में नहीं की हैये '.. ' . .. %- U... - :: . . . . : - ..' . .

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