Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 111
________________ वादीपसिंह- .. .....: -सुखदुःखे प्रजाधीने तदाभूतां मजापते। . . . . . प्रजानां जन्मवज्यं हि सर्वत्र पितरो नृपाः॥.. .. २-रात्रिंदिवविभागेषु नियतो नियति व्यधात् । कालातिपातमात्रेण कर्तव्यं हि विनश्यति ॥ ३-प्रयुद्धेऽस्मिन् भुवं कृत्स्ना रक्षत्थेकपुरीमिय। . . ... राजन्वती भूरासीदन्वर्थ रत्नसूरपि ॥ - (क्षेत्रचूड़ामणि) ... महानुभाव ..इन श्लोकोंका अर्थ क्रमशः नीचे लिखे प्रमाण समझे। ..... ...-प्रमाधीशकी प्रनाआधीन होने सुख दुःख प्रजापतिको होते हैं। क्योंकि राजा जन्मको छोड़कर माता पिता होते हैं। .: -नानाने रात दिनका टाइमटेविच (समय विभाग) बना लिया, क्योंकि काल व्यर्थ. - चले जानेसे कंतव्य नष्ट होनाता है। . -रानाके प्रबोषित होने पर रामा समग्र पृथ्वीको एक नगरीकी तरह रक्षा करता . है। और रत्नसु पृथ्वी रानसहित यथार्थ नामवाली होगई। . भाप उक्त छोंकोसे मिलान कर सकते हैं कि पादीमसिंह कृत क्षत्रचुडामणिके श्लोकों में कितनी सरलता है, और प्रत्येक श्लोकमें नीति वाक्यामृत मर दिया है । " कि कालातिपातमात्रेण कर्तव्यं हि विनश्यति " ठीक उर्दू शायरका कथन है कि “ गया वक्त : हाथ माता नहीं, सदा दौर दौरे लगाता नहीं " इत्यादि नीतिके उपदेशके साथ तत् तत् • स्टोर शांत रतका-वैराग्यका खून ही वर्णन किया है, धर्मशास्त्र का उपदेश दिया है। तथा पदलालित्य, समुचित पद, हृदयग्राही टांत, हृदय-रोचकता, अनेक लोकोक्ति, ::मितोक्ति श्रादि गुणोंसे मिश्रित यह अद्वितीय काव्य है इसका प्रचार खून करना चाहिये। :: इसके अतिरिक्त हमें इसका गौरव, होना चाहिये कि हमारे यहां ऐसे १ महाकाव्य र हैं, जिनके सहश अभी कहीं नहीं पाये जाते, और जिनके श्लोकों को ही देखकर अच्छे । पण्डित दांतों तले अंगुली दबाते हैं। जैसे:: "क ख गो घ ङ च च्छौ जो शादड दा तु। . था दुधान्य पफया भामा थारा ल व श ष स"॥ : - इसका अर्थ अच्छे २ विद्वानोंने नहीं करपाया, इसका सादृश्य हमें कहीं मिलता ही नहीं, और नहीं मी होगा। बत्तीस व्यंजनों का क्रमशः छोक बनाना किसीकी शक्ति होगी। इसमें विद्वान् अनुमान ही लगाले ।

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