Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 56
________________ अतएव सर्व पदार्थाका परिगमन कराने वाला एक कोई द्रव्यान्तर अवश्य है यह निश्रय हो गया । उसका नाम 'काल' नियत किया है । अस्तु । .... . पदायोंकी नवीन दशासे जीर्ण दशा करते रहना काल द्रयका प्रधान कार्य है। . अर्थात् स्वयं परिणमन करनेवाले पदार्थका निमित्तकारण काल है। इसके लिये यदि कोई . महाशय समाधान उपस्थित करें कि "पदार्थोंको नवीनसे पुराना बनानमें घडी, घंटा, दिन आदि कारण हैं कालको एक और दम्पान्तर स्वीकार करना व्यर्थ है" । तो विचारके सम्मुख उनकी यह शंका भी नहीं ठहरती है। क्योंकि बही, र, दिन, बर्ष मादिमी स्याहार है। क्योंकि जिस प्रकार "एक मनमें चालीस सेर होता है। यह एक शावहारिक बात ही है क्योंकि कार्य चलाने के लिये पैसा मान लिया है तथैव व्यवहार के लिये ऐसा मान ससा है कि सूर्य पूर्व से पश्चिममें जबतक पहुँच उतने समयको दिन कहां हैं और उसमें बारह घंटे होते हैं । एक घंटे में साठ मिनट या घाई घडी होती हैं। मदिरा क्योंकि यदि कार्य नहाने के लिये हम घंटेको पैंतालीस मिनटका निश्चय कर मेसा कि प्रायः स्लों में किया जाता है तब भी वह घंटा ही रहेगा। पौन घंटान होगा। इस कारण यह समी महार काल है । अतएव वास्तविक कार ए मवश्य विद्यमान है। क्योंकि जो व्यवहार के लिये पाषाणमूर्तिको सिंह जभी फहसके हैं जबकि सिंह नाम । यथार्थ कोई पदार्थ अवश्य हो । इसी प्रकार बंश, बड़ी, समय आदि तभी कहा जाता है जबकि कोई भी कार पदार्थ है। उसी से कार्य चलाने के लिये अनेक प्रकारके भनेक सफेन बना लिये हैं। यह व्यवहारकाल पदाकि पपीय बदलनेसे, सूर्य, चन्द्रादिकी गमन आदि किसानोति, समयानुसार पदायाँक छोटेपन और बड़ेपनसे जाना जाता है। और निश्चय या यमार्य अपवा वास्तविक काल द्रश्यके बिना यह व्यवहारका सिद्ध नहीं हो सत्ता है। इसके अतिरिका एक यह भी समाधान है कि जगतमें ऐसी कोई मी एकाझी ( अना) या सप्तमात ( सगास रहित ) शब्द नहीं है जो कि किसी पदार्थका पाचक न हो अति संसारमें जितने भी शब्द उपलब्ध होते हैं समीके पाच्य पदार्थ अवश्य . विद्यमान है।भसे वरविषाण, या भाकाशप ये शब्द पद्यपि किसी पदार्थक वाचक नहीं है। किन्तु इनके प्रथा पर अवश्य ही किसी पदार्थ के कहनेवाले हैं। क्योंकि आकाश मी जगतमें एक पदार्थ है ही। और पुष्प भी वृक्षोंपर विधमान ही है। इसी प्रकार संसारमें 'काल' शमपी मिटता है तब इसका भी कोई न कोई पाच्य अवश्य है यह नियमानुसार . मीकार करना पड़ेगा। इसी. कालकी सबसे छोटी पर्याय समय कहलाती है । इसी समय के अनुसार प्रत्येक पदार्थका सूक्ष्म परिणमन होता रहता है । कालं द्रव्य के अणु (सबसे छोटे खंड) कोकाकाशके प्रत्येक प्रदेश पर प्रयक मथक स्थित हैं इसी कारण कालद्रव्य अन्य

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