Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 60
________________ (१८ ) ' ईंट, पत्थर, कागज, कलम आदि हालते हैं । पुद्गल वस्तुका अस्तित्व वर्तमान में तो स्पष्ट ही सिद्ध है और पूर्वकालमें उसका अस्तित्व हमारी स्मृति सिद्ध करती है कि कल परसों: और उसके पूर्वकालमें हमने पुदगलोंको देखा सुना अनुभवन किया था । इतिहास और पुरानी कथाओं से अनंत मृतकालके दलोंका अस्तित्व प्रतीत होता है। अब आगामी कालमें भी पुद्गल पदार्थोंका अस्तित्व रहेगा इसमें कोई सन्देह कर सक्ते हैं अतः प्रधानतयां इसी पर विचार करना है। पदार्थोंमें गुण होते हैं और गुण वही हैं जो पदार्थोंसे कभी अलहदा नहीं होते सदा सहभावी रहते हैं । धनके कारण मनुष्य धनवान् कहलाता.. है, ऊंटके पास रहने से ऊटवान और गाड़ीका स्वामी होनेसे गाड़ीवान कहलाता है, ऐसा. गुणों और वस्तुओं अर्थात गुण गुणीका संयोगी सम्बन्ध नहीं है क्योंकि धनवान जुदी वस्तु है और धन जुदी वस्तु है । अतः अनिका उप्णताके साथ, जीवका ज्ञानके साथ जैसा सम्बन्ध है वैसा ही गुण गुणीका सम्बन्ध है, कभी ऐसा नहीं हो सक्ता कि अत्रिकी उष्णता तो आप रखने और अनिको मैं अपने पास रखख । इसी प्रकार यह भी नहीं हो सक्ता कि आपका ज्ञान मेरी थैली में रक्खा रहे और आप घर पर बैठे रहें । बस ! इसी प्रकार स्पर्श रस आदि गुणोंका पुढउसे सम्बन्ध हैं- श्री स्वामी कुंदकुन्द मुनिंद्रने कहा है कि दव्वेण विणा पण गुणाः गुणेहि दव्वं विणा णः संभवदि अन्वदिरित्तो भावो दव्य गुणाणं हवदि तहमा ॥ 24 भावार्थ - द्रव्यके विना गुण नहीं होते और गुणोंके विना द्रव्य नहीं होते इस लिये द्रव्य और गुणका 'अव्यतिरिक्त भाव है। कहने का अभिप्राय यह है कि पुलके स्पर्श रस आदि गुण कभी नष्ट नहीं हो सके इससे उसका आगामी कालमें कायम रहना स्पष्ट तथा सिद्ध होता है । सारांश ! पुद्गल ये हैं और रहेंगे। इसी कारण पुद्गल पदार्थ सत् है, सतुका कभी विनाश नहीं होता और कभी असत्का उत्पाद नहीं होता यही वस्तुका वस्तुत्व है । सूत्रजी में कहा है कि सत- उत्पाद, व्यय, ध्रुव युक्त होता है. अर्थात वस्तुकी हालतें बदलती रहती हैं पर वस्तु कायम रहती है । . : जिस प्रकार पुद्गलमें स्पर्शादि गुण हैं वैसे ही थाली लोटा आदि पर्यायें भी हैं । भेद इतना है कि गुण तो साथ रहते हैं अर्थात सहभावी होते हैं और पर्यायें क्रमशः होती हैं अर्थात क्रमभावी होती हैं । भाव यह कि एक द्रव्यमें एक कालमें एक ही पर्याय होती है पश्चात् दुसरी, पश्चात् दूसरी, पश्चात् दुसरी, पश्चात् दूसरी, वस । यही उसका उत्पाद व्यय है अर्थात् एक पर्यायका लय हो जाना और दूसरीका प्रगट होना फिर उसका ..... भी उसीमें लय हो जाना और तीसरीका प्रगट होना । *...

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