Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 88
________________ यह राजनीति: काममें लाई जाय तो मान भारतवर्षकी यह दशा नहीं होती। प्रिय पाठक बंद; मैं अब "धर्मशर्माभ्युदय की उत्तमता दिखाता हूं। इस महाकाव्यके रचयिता श्रीयुत . कवि हरिचन्द्रकी प्रशंसा बहुतसे प्राचीन विद्वानोंने की है। उसमेंसे हम. कादम्बरी"के : रंचियता श्रीयुत बाणकवि "हर्षचरित में कहेगये पद्यको दिखाते हैं। .:. . . पधन्धोज्ज्वलो हारी, कृतवर्यकमास्थिति। . भारहरिश्चन्द्रस्य, गद्यषन्धो नृपायते ॥ ( हर्षचरित ) ".. .. प्रिय पाठकवृन्द ! प्रसिद्ध वाणकवि भी कहता है कि पदबन्धोंसे उन्ज्वल,हारी,ऐसी - भट्टारहरिश्चन्द्रकी गद्यबन्ध नृपकी तरह आचरण करती है । उन्हीं श्रीयुत कविराम हरिश्च· चन्द्रकृत यह एक मनोहर पयकाव्य है । - इसकी हम क्या प्रशंसा करें इसके प्रथम सर्गमें सज्जनदुर्जन वर्णन बहुत चारु.. रीतिसे किया जाता है । उदाहरणार्थ हम दो पद्य उद्धृत करते हैं। गुणानस्तान्नयतोयसाधुपद्मस्य यावदिनमस्तु लक्ष्मीः। दिनावसाने तु भवेद्गतश्री राज्ञः सभासंनिधिमुद्रितास्यः॥ धर्मशर्मा० : उच्चासनस्थोऽपि सतां न किंचिनीचः स चित्तेषु चमत्करोति। स्वर्णाद्रिश्रृंगाग्रमधिष्टितोऽपि काको वराकः खलु काक एवाघ.अ. प्रिय पाठक वृंद ! अपरके श्लोकों श्लेषगर्मित स्वमावोक्तिको दुर्जनके लिये कैसा .: दिखलाया है सो विचारिये । तथा दूसरेमें दुर्जनके लिये कैसा अर्थातर दिखलाया है। . तथा इसी तरह इस ही पहिले सर्गमें जम्बूद्वीप, सुवर्णगिरि तथा रत्नपुर नामके ग्रामका वर्णन पदलालित्य, अलंकार, रस, उपमा, उपमेय आदिसे अधिकतम सुन्दर बना • दिया है। जो कि नैपध माधर्म नहीं पाया जा सकता। तथा पांचवें सर्गमें स्वर्गसे उतरती हुई देवांगनाका अत्यंत मनोहर ऐसा वर्णन किया है जो कि नैषध, माघमें उन देवांगना. '. ओंका ऐसा वर्णन ही नहीं मिलता तथा सुन्दरके साथ २ वृहदाधिक्य के साथ किया है। . जिसको कि बहुतसे महाकाव्यों सिर्फ ३-४ श्लोकोंसे किया होगा। तथा इसी तरह इस महाकाव्यके कुल दसवें सर्गमें विन्ध्याचल पर्वतका कैसा उत्कृष्ट उत्तम वर्णन किया है नो. ....कि किसी काव्यके अन्दर नहीं पाया जाता है तथा ११ वें सर्गमें ऋतुओंका वर्णन विशेष उल्लेखनीय है किन्तु हम उसका दृष्टांत स्वरूप देने में बिलकुल असमर्थ हैं; क्योंकि अभी बहुत दूर पड़ाव है; . . . . . . .:. . . अब हम हर्पकवि, श्रीयुत हरिचंद्र कविनीकी काव्यरचनाका मिलानकर "महा. काव्य के भागको ख़तम करेंगे । . .

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