Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 74
________________ (8.) करते हुए जैनालंकारिक काव्यका लक्षण अलंकार चिंतामणि के अनुसार कहते हैं । - " शब्दार्थात नवरसकलित रीतिभावाभिरामं । siverse विदोष गुणगणकलित नेतृसद्वर्णनाढ्यं ॥ लोकोपकारी स्फुटसिंह तनुतात् काव्यमग्र्यं सुखार्थी नानाशास्त्रप्रवीणः कविरतुलमतिः पुण्यधर्मो रुहेतुम् ॥ (अलंकार चिंतामणि) यह जैन कवि श्रीमद्भगवज्जिनसेनाचार्यका कहा हुआ निर्दोष एवं च मान्य काव्यका लक्षण है । इस इलोकका अर्थ इस प्रकार है- शब्दालंकार, अर्थालंकार से दीप्त, नवरस सहित, रीति और भावसे सुन्दर व्य ग्यादि अर्थवाला, दोषरहित गुणसहित नेताकी सद्दर्णनसे पूर्ण, इह तथा परलोकका उपकारी, पुण्यधर्मका बड़ा भारी कारण, ऐसे काव्यको नानाशास्त्रप्रवीण, अनुपम बुद्धिवाला कवि करे | इस काव्यलक्षण से लक्षित काव्य ही वास्तविक काव्य कहा जा सकता है। इस तरहके 'काव्यसे उपर्युक्त प्रयोजन अथवा अन्यत्रोक्त " धर्मार्थकाममोक्षेषु वैचक्षण्यं कलाषु च । करोति कीर्ति प्रीति च साधुकाव्यनिषेवणं ॥ (साहित्यदर्पण) इस प्रयोजनकी सिद्धि हो सकती है । अतः अब विचार करना चाहिये कि भारतीय काव्य भंडारोंमें ऐसे कितने काव्यरत्न हैं जो कि उक्त पूर्व लक्षण लक्षित हों । इसका विचार करनेके लिये सबसे पहिले " लोकन्द्वोपकारी पुण्यधर्मोरुहेतुम् " इन दोनों विशेषणोंको हम उपस्थित करते हैं । जो पुण्यधर्मोस्तु है । वास्तव में वही काव्यचितामणि उभयलोकका हितकारी होकर मनवांछित फलप्रद है । 'अब हमको यह विचार करना चाहिये कि पुण्य और धर्मकी शिक्षा जिनसे मिल सकती है ऐसे काव्य कितने हैं। सर्व प्रथम हम अजैन नैषधादि लोकप्रसिद्ध सरस काव्योंपर ही दृष्टिपात करते हैं, तो उसमें एक पुरुषका स्त्रीके साथ किस तरहका प्रेम होता है और उसका कैसे निर्वाह होता है इत्यादि विषयोंको छोड़कर धर्मादि शिक्षाकी प्राप्ति नहीं हो सकती और जो जो प्रसिद्ध प्रसिद्ध काव्य हैं उनमें माघ किरातादि तथा रघुवंश "कुमारसंभवादि हैं। उन्होंने कोई तो श्रृंगाररस ही से लबालब भरे हुए हैं । कोई बीररंस प्रधान तथा च कोई वंशवर्णनात्मक हैं । उसीको पुष्ट करते हुये ग्रंथान्त हुये हैं । उन्होंने आदिसे अन्ततक अवलोकन करने पर भी धर्मोपदेशकी गन्ध भी नहीं मिलती । पूर्वोक्तं प्रयोजनेच्छु हम नैनकाव्यमार्ग में पदार्पण करते ही उक्त प्रयोजनको पद पद पर


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