Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 78
________________ : .:.: : .: .::1 " " :: ............: दास्तवमें कोई निरपेक्ष सज्जन सुहृदयवर काव्यपरीक्षक जिस समय निरपेक्ष चश्माको लगाकर यदि काव्योंकी उत्तमताका विचार करेगा तो हम इस वातको दावेके साथ कह सकते हैं कि जैन काव्योंकी ही सर्व प्रथम उत्तमता, उसे ज्ञात होगी क्योंकि जैन काव्यसमुदाय, शब्दालंकार, अर्थालंकारोंके पुंजोंसे विभूषित एवं चं नवरस सहित, सुरीति भावोसे मनोहर, पदः पदके व्यंगादि अर्थसे आश्चर्यको करनेवाला, गुणोंकी पंक्ति वरमालासे घिरा: हुआ एक अद्वितीयताको लिये हुए हैं। वास्तवमें जिस समय मेघमालासे आच्छादितः सूर्य रूपी जैन काव्यसमुदायकी एक किरण मासिक पत्र " नैनसिद्धांतभास्कर " में प्रकाशित हुई उसी समयसे ही जैनकाव्यकी उत्तमता सिद्ध हो चुकी थी। हम भी अपने पाठकवृन्दोंके लिये इस किरणको देकर समस्त हृदयकमलोंको प्रकाशित किये देते हैं। • "तातो ताती ततेता ततति ततो तता ताति तांती ततत्ता। तात्तातीता तताती ततति ततितता तत्ततत्ते तिततिः ॥ तातातीतः तिताती तततु तंतिततां ततिता तूति तत्ते । . . 'ताते तितो तुतात्ता ततुतति तुत्ततितां तत्तु तोत्तः ॥ यह श्लोक त्रैमासिकपत्र नसिद्धांत भास्कर में प्रकाशित हुआ था, और उसका अर्थ लगाने लिये २६०) पारितोषिक मिलने के लिये भी सूचना.थी । अर्वाचीन दुनियां के समस्त संस्कृत के विद्वानों में से किसीने भी इसका अर्थ न लगा पाया । अवधिक पूर्ण होनेपर पत्रके सुयोग्य सम्पादक एवं च देशकी वेदीपर, त्यागधर्मको करनेवाले देश : भक्तं पदमराजजी रानीवालोंने इसके लिये द्विगुणित. पारितोषिक बढ़ाया पर भी आजतक किसी मी माईके लालने इस श्लोकका अर्थ नः लगा पाया । : काशीके अन्दर काव्य विषयके उत्तम २: विद्वान उपस्थित हैं जिन्होंने कि काव्य पढ़नेमें ही अपने जीवनकों बिताया है। एक विद्वान् जिसने कि काव्यके बड़े ग्रंथ अध्ययन किये थे, तथा उनको ५८ चम्पू कंठस्थ थे, बोले कि यह श्लोक अशुद्ध है क्योंकि मैंने तमाम संस्कृत कोषोंके आधार पर इस श्लोकको १. माहतक लगाया है, किन्तु यह :- लगता नहीं है। इसपर एक सज्जनवृंदने कहा कि प्राचीन ग्रंथोंके संग्रहस्वरूपः ऐसे अनसिद्धांतभवन " आरामें जाकर इस श्लोकके : अर्थको पढ़कर हे काशी नगरीके प्रधान काव्यपंडित ! आप अपनी पंडितमानिताको त्यागकर जैन काव्योंका एक तरफसे ध्यान पूर्वक देखना प्रारम्भ कर दीजिये, आपको मंजिल मनिलपर शब्दार्थालंकारोंकी कुटियोंमें नूतन रससे भरे हुए ऐसे गुणगणमय फल मिलेंगे जिनके कि आप स्वादको. 'लेकर अपने जीवनको धाया तथा च कृतकृत्य मानेंगे । :: :

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