Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ हैं अब एक गोलीको धक्का देओ तो वह दूसरेको और दूसरी तीसरी .. आदिको धक्का देगी ऐसा ही शब्दमें होता है । शब्द: भीत ऑदिसें. bodob रुक जाता है और कभी उलटकर पुनः सुनाई देती है उसे प्रतिध्वनि ..... कहते हैं । इससे स्पष्ट है कि शब्द. मूर्तीक है और मूर्तीक पुदगलोंसे उत्पन्न है । परन्तु शब्दको पुदगला गुण नहीं कह सकते : क्योंकि वह पुद्गलमें. सदा नहीं रहता और: गुण वही होता है जो पदार्थमें सदा रहता है. अतः शब्द पुद्गल की पर्याय याने हालत है। बहुतसे मतान्तर वादी शब्दकों णाकाशका गुण बतलाते हैं उन्हें हम सम्बोधन करते हैं कि अरूपी अाकाशसे मुर्तीक शब्द नहीं निस्पन्न हो सक्ता अगर शब्द आकाशका गुण होता तो लोक अलोक सदा एकसा शब्दायमान रहता और यह घंटेकी आवाज, यह बांसुरीकी तान और यह वीनकी ध्वनि है ऐसा वोव नहीं होता। इतने थोड़ेही वक्तव्यसे आप लोग समझ गये होंगे कि जो कुछ इन्द्रिय, गोचर है वह पुदंगल है इस लिये. अँधेरा, धूप, छाया, प्रकाश, शरीर, वचन, जल, वायु, अग्नि, पहाड, स्वास निस्वास, आदि सब पुद्गल हैं। विनली, टेलीफोन, रेल, तार आदि सब पुदलके चमत्कार हैं। कई मतान्तर वादी कहते हैं कि जो कुछ हम देखते. सुंचते.. सुनते हैं यह सबै मिथ्या अर्थात् असत् है । इसका निराकरण हम केवल इतनेमें ही करके आगे चलेंगे कि जो वे यह कहते हैं " कि जगत मिथ्या है भ्रांति है । सो उनका ऐसा कहना भी भ्रांति हुआ अतः उनका मिथ्या भ्रांति रूप वचन भी प्रमाण नहीं हैं। . अब एक चाक मिट्टीका टुकड़ा लेओ उसमेंका एक खसखससे भी छोटा टुकड़ा स्लेट पर रक्खो । उस छोटेसे कणके चाकूसे जितने बन सके खंड करो। उन खंडोंमेसे सबसे छोटे खडके फिर खंड करो, यदि साधारण प्रकाशसे काम नहीं चले तो धूपमेंसे . खंड करो और सबसे छोटे खडके पुनः खंड करो, यदि साधारण आखोंकी दृष्टि काम न देवे तो चश्मेसे काम , लेओ और खंड करो। फिर चश्मा काम नं देवे तो माइक्रांसकोपसे देखके खंड करो । नत्र माइक्रासकोपसे भी निरुपाय होते देखो तो बहुत बढ़ियां सुक्ष्म दर्शक यंत्रसे देखकर खंड करो । और जब सूक्ष्मदर्शक यंत्र भी व्यर्थ होने लगे तो .. ज्ञानसे खंड विचारौ । बस सबसे छोटेमें छोटे पुद्गल अणुको निसका फिर खंड नहीं हो : सके उसे बुद्धिसे विचारो उसीका नाम परमाणु है। ऐसे परमाणु भी स्पर्श, रस, गंध, वर्ण : वंत रहते हैं क्योंकि किसी वस्तु के गुण कभी नष्ट नहीं हो सक्ते । जब कि इन परमाणु में स्निग्धता रुक्षता सदा स्वाभाविक रहती है तो वे एक दूसरे मिला करते हैं और दो .. तीन चार संख्यात असंख्यात अनंतकी संख्यामें भी मिल जाते हैं ऐसी बन्ध रूप दशामें : उन्हें स्कंध कहते हैं । अब आप सोच सक्ते हैं कि परमाणु ही असली पुद्गल है जिसकी

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114