Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 28
________________ .. ... प्रत्यक्ष द्वारा अनुमित पदाथको ही. मानता है और वह पदार्थ क्षणस्विति शील (क्षणिक); है ऐसा कहता है। ... :सौत्रान्तिकेन प्रत्यक्ष ग्राह्योऽर्थो न वहिर्मतः । सौत्रांतिका (मास्तिक) : केवल प्रत्यक्ष वस्तु ही को मानता है। , यद्यपि बौद्ध सामान्य पनेसे प्रत्यक्ष अनुमान दो प्रमाण मानते हैं किन्तु बौद्ध भेदान्तर्गत सौत्रान्तिक केवल प्रत्यक्ष पदार्थको ही मानता है। वैभाषिक संपूर्ण पदार्थीको प्रत्यक्ष और क्षणपङ्गुर मानते हैं। . : ..... ..... अर्थाज्ञानान्त्रित: वैभाषिकेण बहुमन्यते " वैमापि ज्ञानाधित पदार्थको बहु.. 'ज्ञान मानते हैं। यह सुक्ष्मतः बौद्धोंकी पदार्थ. कल्पना है। .... .... बौद्ध पदार्थको क्षणिक मानते हैं। वे कहते हैं कि " सर्व क्षणिक सत्वात् । सन .. पदार्थ.. क्षणविनश्वर हैं सत होनेसे। यह अनुमान ठीक नहीं है। क्योंकि सत्वरूप जो हेतु है उसे यदि भाप स्वभाव हेतु मानेंगे तथापि नहीं बन सकता । क्षणिकके विनेश्वर होनेसें हेतुकी ही प्रवृत्ति ही नहीं होती । क्योंकि प्रत्यक्षगोचर पदार्थमें ही हेतुकी प्रवृत्ति होती है । पदाकिा क्षणभंगुरता स्वभाष मी नहीं है। . . (शंडाकार सन ही पदार्थ एक क्षणतक रहनेवाले हैं। विनाशके लिए दूसरोंकी अपेक्षा न करनेसे, जैसे कि कार्योत्पादके ठीक एक समय पहिलेकी सामग्री कार्यात्यत्तिमें : किसीकी आवश्यकता नहीं रखती है। . . . . . . . . . . . . .. दुनिया में घटादिकका मुद्गगदिकसे नाश होता है, ऐसा कथन सिर्फ स्थूठ बुद्धिबालोंका ही है। पदार्थ स्वविनाशी हैं । मुद्गारादिक उसका विनात नहीं करते। .. कल्पना कानिए कि यदि मुद्गरने घरका विनाश किया तो घरसे मिन्न किया अमिन्न । यदि भिन्न कहेंगे तो घरकी स्थिति बनी ही रहनी चाहिये । . यदि अभिन्न नाश किया तो मुद्गरने घरको बना दिया। ..... सत्वरूप हेतुकी विपक्षवृत्ति नहीं है अतः साधु है, क्योंकि सत्व अर्थ क्रियासे . व्याप्त हैं, अर्थ, क्रियाक्रम योगपद्यसे व्याप्त है, नित्यमें कम योगपद्य नहीं रहते मतः अर्थ : क्रिया भी नहीं रहेगी और अर्थ क्रियाके न रहने से नित्यमें सत्व भी नहीं रह सकता अतः । निर्दोष सत्व हेतुं क्षणिक पदार्थकी सिद्धि करता. ही है। .......... यह.बौद्धोका कहना, मी शौमाको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि क्षणिक सिद्धि के लिए जो हेतु दिया था वह सर्वथा सदोष है । घटपटादि पदार्थ विनाशके लिए दूसरों की अपेक्षा रखते ही है और पदाथीको विनाश स्वभावता क्षणिक रूपसे नहीं मानी जासकी। उक्त . ..'


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