Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
हम सबसे प्रथम .इस विषय पर ध्यान देते हैं कि जिन द्रव्योंके भेदोंकाः हमें निश्चय करना है उनका सामान्य स्वरूप. तथा रक्षणं क्या है ? तदनन्तर हम परीक्षक चनेकर सारासारका विचार कर सकेंगे।
... :... ...बहुत अनुसंधान करनेपर इन उपर्युक्त शकाको दूर करने के लिये हमको सारभृतः द्रव्यका लक्षण यह प्राप्त हुआ है कि जो गुण तथा पर्याय स्वरूप हो. वही द्रव्य है" य नी गुण और पायका जो आश्रय है वही द्रव्य है। यहां पर यह ध्यान में रखना. चाहिये कि गुण और पर्याय ऐसे नहीं हैं कि द्रव्यसे पृथक् रहकर उसमें फिर आ मिले ही किन्तु जैसे वृक्षमें शाखाएं हैं शरीरमें अंग तथा उपांग हैं तथैव द्रव्यमें गुणे और पर्याय हैं । अथवा गुण, पर्यायके अतिरिक्त द्रव्य कोई मिन्न वस्तु नहीं है जैसे कि शाखा, पत्ते, फूल, फल आदिके विना वृक्ष कोई भिन्न पदार्थ नहीं है । इनमें से "द्रव्यको समी अवस्था
ओंमें रहनेवाला और अन्य द्रयोंसे भेद दिखलानेवाला गुण, है और उसी गुणकी नवीन २ जो दशाएं हैं वे 'पर्याय' कहलाती हैं। जैसे चेतन द्रव्यमें यदि ज्ञानगुण हैं तो. वहं ज्ञान बाल्या, यौवन, प्रौढ तथा कौमार आदि सभी दशाओं में रहेगा किन्तु उस ज्ञानकी पर्याय प्रतिसमय नवीन नवीन ही होंगी यानी किसी समय पुस्तकरूप वह ज्ञान है अन्य समय घटरूप है तदनन्तर जलरूप है । आदि । यानी ज्ञानगुण जिप्तः जित नवीन हालतमें, होगा उसकी पर्याय मी उसी रूपमें होगी। इसी लिये सारांश यह निकला कि गुण द्रव्यके साथ सर्वज्ञ रहता है और पर्याय: केवल एक ही समय तक रहती है। ..: : यहां पर यह कह देना आवश्यक होगा कि प्रत्येक द्रव्यमें बहुतसे गुण रहते हैं. जिनको किसी प्रकार से गिन नहीं सकते हैं. अतएव उनकी संख्या अनंत शब्दसे ही कहेंगे। पर्शयोंकी संख्या भी द्रवपमें ऐसी ही हैं। अब इस प्रकार द्रव्यकी. परिभाषा हो गई:
कि "अनेन गुर्गोवा समुदाय एवं भूत, भविष्यत् तथा वर्तमानकाल संबंधी पर्यायों का समूह . ही द्रव्य है." क्योंकि एक समयो एक गुणको एक पर्याय और दूसरे समयमें उसी 'गुणकी दुमरी पर्याय हो जाती है। किन्तु, यह बात मान रहे कि गुणोंकी यद्यपि अनेक : होलते होंगी परन्तु उनका स्वरूप नहीं बदलेगा। जैसे मनुष्यको यद्यपि बालक, युवा आदि ...अनेक दशा होगी परन्तु वह उन सभी दशाओं में मनुष्य ही रहेगा अन्य नहीं होगा।
हम इसीसें पता लगा सक्त हैं कि द्रव्य क्या वस्तु है और गुणः क्या है?
...
...
...::
-
इसी म्पका यदि अन्य प्रकारसे लक्ष बनाया जाय तो इस प्रकार बनता है किं. नों उत्पाद, व्ययः तथा प्रौव्य रूप हैं वही द्रव्य है । अर्थात उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य जिसमें मिल वह व्य है