Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 47
________________ षद्रव्यका आवश्यक्ता और उनकी सिद्धि। . . जैन साहित्य समां लखनऊमा लेख नं०२।। (लेखक:-पं० समितकुमार शास्त्री-मुंबई) TERRHEATREविधिको नशाया, संग्रामा ता भी मिटाया Freeो पदबार ताने, मेरो प्रभो ! दुसन सा ॥ पिपपर सजन समाम ! TH HIT महासागर है निके गाव नलने मान नाना प्रकारके भनेक भन्नु की क्षारतासे, बयानलकी ती उष्णतासे तथा पारस्परिक कलहकी वेदनासे एवं मयावह महाकाटोलों संग अETA पीडाको सहन करते हुए, इधरउधर भटक रहे हैं किन्तु उस अपार पारावारकी शांतिदायिनी भूमिको न पानसे मी दुःखमारमें दुबे. हुए और भी अधिक रपटा रहे हैं। अपना यह जगत एक महाउपान है जिसमें चेनन दमा अतन दो प्रकार के वृक्ष को हुए हैं। मिल प्रकार अनंतन पौधे अनेक प्रकारके हैं नव चेतन वृक्ष भी विविध प्रकार लगे हप हैं। कोई महा उता है, कोई लघु आकारके हैं । एवं कोई रमणीय मनोहर और कोई महा असुन्दर हैं। atines है कि यह कार एक विशाळ आशयमगत या भगायघर है. . महत पर अनेक मुकार समक्ष एकति दिये गये हैं। आतु । ___ म विना विषय पर करना है कि शिको समी हो। जगत कह रहे हैं। या भारत ETA: 1पा है ? और सरिता मारके पथ विद्यमान है। EिR HAT ाममनों हम पाइन सरित करते हैं उस समय हमको - पारों ओर एक ही सा मिल जाता है कि "यमान तथा अनेक प्रकारसे • शापमान नाना पायीका समाय ही जाता है पिस उत्ताके विशेष विशेष अशोमें - पारस्परिक विवाद है किन्तु सामान्य उसा समस्त पुरुपोंका समान ही है । भानु । पनि समय नितीश उपस्थित किया जाता है उस समय हमको अनेक उता नाना प्रकारसे न होते हैं। इस कारण इस विषयका पता लगनाता है कि इन ...समी उत्तरोंमें मनायो मी पंताय यथार्ण नहीं है किंतु यदि ठीक होगा भी तो ... एक मनस्य ही फ होगा। शेष सभी मत भयर्थ (ग) होंगे । अस्तु । . . .. श्रान हम अपना अल्प मा इमी परीक्षा में व्यतीत करते हैं जिसका एक एका मनोहारी फ निकालेंगे जो कि हमको ापूर्व, अनुपम तथा महा आनंद प्रमोद प्रदान करेगा भिप कि हमारे समी मल्यता हमको अपूत्यता भेट करेगी। . . .

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