Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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अगुरुगलघुरोहिं सपा ते हि अणते हि परिणदं णिच।। गदिकिरिया जुत्ताण कारणभू संयमकन्न ॥ २ ॥ उदयं जद मच्छाणं गमणागहगर हवदिलोये ।
तहजीव पुरंगलाणं धम्म दव्यं वियांणे हि ॥३॥ .: मावार्थ-धर्मास्तिकाय स्पर्श रसं गन्ध वर्ण और शब्दो रहित हैं, अतएव अमूर्त.
पाच लोकशाशमें पा है, मजण्ड विस्तृन और अमरुगात प्रवेशी हैं, पम्मान " पतित वृद्धिहानि द्वारा भगुरुज्य गुगके कारण अविभाग प्रतिच्छेदोंकी हीनाधिकतासे
उमाद व्यर महर है । स्वासे कदापि च्युन न होने के कारण नित्य है । गति विक्रिया युक्त भी पदलों के गमनमें महायक हैं ! आप किसीसे उत्पन्न नहीं हुआ है अतः भकार्य । जन मयादिकोंक गमनमें स्वयं न मलवार जमे महकारी है उसी प्रकार जीव पद्गलोके . साप स्वयं न गमन करता हुषा उनके ( जीव दलके ) गगनमें सहकारी . मात्र है। यहां ६. यह लक्ष्य रखना चाहिये कि धर्म अधर्म शब्द का उपयोग हष्ट स्वयमें भी आता है। लोकमें
ग्य पापको भी धर्म अधर्म कहते हैं जिसमें कि घातीति धर्मः न धर्मः असर ये व्युरित्तियां है। ये धर्म अधर्म शब्द गुणवाचक है लेकिन इस कथनगत धर्म मर्म शब्द दायवाची हैं।
धर्म पका स्वरूप संक्षेपसे यह है कि नीव प्रगलोंको गमनमें महकारी मात्र हो वह धर्म, और जो उहराने में जीव पृट्टालोंको सहकारी हो उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं । मिम साह पवन, पताका उड़ाता है पायकी नानको चलाती है. या मोटर मनुष्यको स्थानान्तरपर पहुंचाती है, उसी प्रकार धर्म द्रव्य नीर पुदलोके गमनमें सहकारी नहीं है क्योंकि । निक याणि । इस सूत्रसे धर्मादि द्रयों को निष्क्रिय पाया है। जो स्वयं क्रियायुक्त, नहीं, यह :
मरीकी क्रिया नहीं करा सक्ती किन्तु धर्म द्रय उदासीन निमित्त कारण है। इसी तरह .. अधर्म द्रध्यकी भारतमी समझना चाहिये। अधर्मको पी जीव पदोंकी स्थिति में उसासीन :
निमित्त कारणता है। ... .: शंका- किधर्म अधर्म द्रव्य और आक्षाशा क्रिया अहित हैं तो उनगद नही होना चाहिये, उत्पादनहीं होगा तो व्यय यी नहीं होगा क्योंक्ति जो २. उत्पादपाले.. है वही व्ययवाले देखे गये हैं। घटादिक नो व्ययवाद. नहीं हैं ये उत्गदेवाले भी नहीं हैं. से कि आमा । ... ....
अन्यध, उत्पादन होनी ही व्यय के अभाव का सुक हैं क्योंकि । कार्योत्पादः क्षय हेतु कार्यका उत्पाद है, वही क्षणका कारण है । उत्पाद व्यय न होनेसे इनमें : लक्षण घटित नहीं हो सकता। यह रहना भी युक्त संगत नहीं है। यद्यपि क्रिया निमित्त नित्पाद यहीवर नहीं भी । तपापि वपर निर्मित उत्पाद यशापर अच्छी तरह घटित हो