Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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.. तृतीय लेख इसी विषयमें पण्डित बुद्धिलालजीका आया। यह लेख केवल हिन्दीकी सिफ्तसे अच्छा है परन्तु संस्कृत शास्त्रोंके तथा तदनुसार लौकिक युक्तियोंके अवलम्बनसे .' लिखा जाता तो विशेष प्रशंसावह होता। कुछ हिन्दीकी अशुद्धियां भी हैं तथापि प्रमेय
कुछ नव्यताकी वायुसे संस्कृत किया गया है परन्तु पूर्ण गलत नहीं होप्तका । इनको ४६ नम्बर दिये तथा समाकी तरफसे तृतीय पारितोषक २०) वीस रुपया भी दिया गया।
षड्दव्यकी आवश्यक्ताके विषयमें ये ही सिर्फ तीन लेख आये थे।
द्वितीय विषय जैन साहित्यकी महत्ताके उपर प्रथम लेख पं० बनवारीलालजी स्याद्वादीका आया । इनका लेख उत्तम है । क्वचित अशुद्धियां भी हैं किन्तु श्रमसे लिखा गया है । जैन काव्योंके महत्वपर अच्छा प्रकाश डाला है फिर भी अन्त महत्व तक दृष्टि नहीं पहुंची। श्रम विशेष प्रशंसनीय है । इनको ७० नम्बर मिले तथा ५०) पचाप्त रुपया सभाकी तरफसे पारितोषक भी मिला।
उक्त विषयपर द्वितीय लेख पं० सतीशचंद्रनी काशीका माया । आपका प्रयत्न अच्छा है किन्तु वैष्णव नियमोंपर विशेष लक्ष रखा है। नैन काव्योंमें दूसरे अन्यमतीय काव्योंसे महत्वद्योतक बातें अनेक भरी पड़ी हैं जिनका कि सम्बन्ध लौकिक पूर्ण मुख और निःश्रेयसके मतीन्द्रिय सुखसे है उन बातोंका जिक्र नहीं आया है फिर भी हिन्दी लेखनदृष्टिसे तथा शब्दालकार महिमासे यह लेख जनताको आदरणीय है। इनको लब्धाङ्क ६२ दिये गये तथा सभाकी तरफसे दूसरे नम्बरका इनाम ३०) रुपया भी दिया गया।
तीसरा लेख इसी विषय पर पं० अजितकुमारजीका आया । आपका लेख उचित है। जैनत्वकी भी छाया है । अन्त्य महत्व तक नहीं पहुंचे जो साहित्यका चरम फल है। नम्बर ५८ दिये गये तथा तीसरे नम्बरका इनाम २०) वीस रुपया दिया गया। ये तीन लेख जैन साहित्यके महत्व विषयपर माये । आशा है कि समाज इन लेखोंसे लाभ उठानेकी चेष्टा करेगा। । अन्तमें समान नेताओं, विद्वानोंसे नम्र निवेदन है कि इस कार्यमें यदि किसी प्रकारकी त्रुटि रह गई हो तो क्षमा करें तथा प्रार्थना है कि इसी प्रकार दोनों तरफ यानी समाज नेता तथा विद्वानों की तरफसे प्रयत्न किया जायगा तो चन्द दिनों बाद ही माप जैन सिद्धान्त वृक्षकी प्रत्येक दिशामें छाया पड़ी हुई देखेंगे। विशेष्वलमिति ।
निवेदक-माणिकचन्द्र कोंदेय-मोरेना ।