Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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कोई ऐसी न करे कि मरण पश्चात् जीव दूसरी गतिको जाता है उस समय इसके कोट नापि दुपरी गति far Tirरूप क्रिया करता ही
कर्म नहीं होते हैं यह भी ठीक नहीं क्योंकि विग्रह गतिमें जीवके कार्माणका योग रहता ही है । क्रिया
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क्षण अक्षेरण, आकुञ्च प्रसारण, गमन इ ताह पांच प्रकार बतलाई गई है । मुक्तोंमें उक्त पत्र क्रियाओं से कोई भी क्रिया नहीं देखी जाती गतः मुक्त सक्रिय नहीं हो सक्ते हैं और निष्क्रिय होने से अवस्तुताकी आपत्ति अती है अतः वास्तुका लक्षण अर्थक्रियाकारित्व भी नहीं मानना चाहिये । वैशेषिक 'वस्तुका लक्षण सत्तारूप है' ऐसा ही मानते हैं, उनका यह लक्षण मानना भी समुचित नहीं है क्योंकि सत्तासे : उनने महासत्ता मानी है और उस महत्ताको नित्य ही मानते हैं अतः सिद्ध नहीं हो सक्ती
सम्व महोदय ! पूर्वोक कथनमें द्राणके लक्षणकी परीक्षा करने के लिए द्रव्यका लक्षण अच्छी तरह तर्क कसौटी पर चढ़ाया गया है । अब भगाड़ी मुझे आपके सामने यह और पेश करना है कि कितनी है और किस किसने कितनी मानी हैं ।
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यह बात मली मांति विदित होगी कि पदार्थको प्रक्षगत करके ही तुलना की जाती है। उससे पदार्थका मिना विशदे ज्ञान होता है उतना अनुपाना दिसे नहीं होता हमें in far अवश्य मानना चाहिये क्योंकि तुना बिना पदान्त के नहीं होती, जैसे कि काले रूपक रहनेसे ही शुक्ल रूपकी महत्ता या अन्वकार के रहने से प्रकी"शी, रात्रि के होने से दिनकी, मूखसे विद्वानकी, तथैव द्र के मम्यक लक्षणकी मी द्रव्यक्षण मासे महत्ता है और द्रश्य ख्शकी महत्ता मी 'तमी प्रमाणत को प्राप्त होती है, जब कि द्रव्य संख्यामासः (झुठी दर की संख्या) हो अतः यहीं पर कति संख्याको लिखकर और उसका खण्डन बनके स्व चनी जैनियोंके द्वारा करात सरूपाके सिद्ध करने में यही तात्पर्य है
जिस तरह दूसरोंके द्वारा स्वीकृत द्रव्यके लक्षण भिन्न २ होने पर भी सटकनाको नहीं प्रप्त होते हैं उसी तरह अन्य महाशयों द्वग निर्धारित द्रव्यकी संख्या भी ठीक २ प्रतीत नहीं होती । बिन्ही २ की मानी हुई संख्या किसी न किसी भेद कर रहित और किन्ही किन्हीने उस द्रव्यकी संख्या वृद्धि के लिए पुनरुक्तको यी दोष नहीं माना है । दुपाधि रणवृत्ति सत्ताभिन्न जातिमत्वं द्रव्यस्यैव रक्षण " इस द्रव्यक: लक्षणको स्वीकार करने वाले वैशे ष रु सात पदार्थ द्रव्यं, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अमाव मानते हैं। यहां उनका सिद्धान्त बना कर पुन: मैं जैनियोंके द्वारा “कल्पित संख्यांकी तुलना करता हुआ वैशे पेड़ों को अभिनय द्र्व्य संख्याकी निरर्थकता बतः ।।