Book Title: Shabdarupavali
Author(s): Rushabhchandrasagar
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 22
________________ (१७) व्यञ्जनान्त नपुं. - 'जगत्' शब्द [41. 34] जगती प्र० द्वि० जगत्, द् जगत्, द् जगन्ति जगन्ति जगती जगद्भिः जगद्भ्यः जगद्भ्यः जगता जगद्भ्याम् जगते जगद्भ्याम् जगतः जगद्भ्याम् जगतः जगतोः जगति जगतोः हे जगत्, द् ! हे जगती ! जगताम् स० सं० जगत्सु हे जगन्ति ! આ રીતે વિયેત્ વિગેરે શબ્દોના રૂપો થશે. (१८) व्यञ्जनान्त स्त्रीलिङ्ग - 'युध्' शब्द __ (मस्त्व त्) [ul. 34] प्र० युत्, द् युधौ युधः द्वि० युधम् युधौ तृ० युधा युद्भ्याम् युद्भिः युधः १० शE-३पावली) Jain Education International 2500 Pobrate & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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