Book Title: Shabdarupavali
Author(s): Rushabhchandrasagar
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 81
________________ ( १२१) ऋकारान्त स्त्रीलिंग - 'स्वसृ' शब्द [49] स्वसारौ स्वसारः स्वसारौ प्रo द्वि० तृ० च० पं० ष० स्वसा स्वसारम् स्वस्रा स्वस्त्रे स्वसुः स्वसुः स्वसरि स० सं० हे स्वसः ! प्रo द्वि० नप्ता नप्तारम् तृ० नप्त्रा च० नप्त्रे पं० ष० स० स्वसृः स्वसृभिः स्वसृभ्यः स्वसृभ्यः स्वसृणाम् स्वसृषु हे स्वसारौ ! हे स्वसारः ! (१२२) ऋकारान्त पुंलिङ्ग - 'नप्तृ ' शब्द [49] ( स्वसृवत् ) नप्तारौ नप्तारौ स्वसृभ्याम् स्वसृभ्याम् स्वसृभ्याम् स्वस्रो: स्वस्रोः नप्तृभ्याम् नप्तृभ्याम् नप्तृभ्याम् नत्रोः नप्तारः नप्तृन् नप्तृभिः नप्तृभ्यः नप्तृभ्यः नप्तॄणाम् नप्तृषु नप्तुः नप्तुः नप्तरि શબ્દ-રૂપાવલી Jain Education International 2860 P0rate & Personal Use Only नत्रोः SC www.jainelibrary.org

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