Book Title: Shabdarupavali
Author(s): Rushabhchandrasagar
Publisher: Purnanand Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ द्वि० गम्यमानाम गम्यमाने गम्यमानाः तृ० गम्यमानया गम्यमानाभ्याम् गम्यमानाभिः गम्यमानायै गम्यमानाभ्याम् गम्यमानाभ्यः पं० गम्यमानायाः गम्यमानाभ्याम् गम्यमानाभ्यः गम्यमानायाः गम्यमानयोः गम्यमानानाम् स० गम्यमानायाम् गम्यमानयोः गम्यमानासु सं० हे गम्यमाने ! हे गम्यमाने ! हे गम्यमानाः ! (६३) भावे वर्तमान कृदन्त - ‘प्रकाश्यमान' (मात्र नपुं. अ.व.) [1. 40] *प्रकाश्यमानम् - - (६४) कर्तरि वर्तमान कृदन्त - ('अस्' धातु) सत्-पुंलिङ्ग (गच्छत्वत्) [. 40] प्र० सन् सन्तौ सन्तः द्वि० सन्तम् सन्तौ सतः ★मावे वर्त.. या साथे४ संबद्ध छे. हिया५हना स्थाने १५२८५ छे. इता गमे तेटमा डोय तो ५ नपुं (प्रथमा) मे.व.मां४ थाय. PAGE-३पावली 34. 34 - Jain Education International 2500 Pobate & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128