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तद्यथा-अग्रबीजा मूलबीजाः पर्वबीजाः स्कन्धबीजा बीजरुहाः सम्मूर्च्छिमास्तृणलता, वनस्पतिकायिकाः सबीजाश्चित्तवन्त
आख्याता अनेकजीवाः पृथक्सत्त्वा अन्यत्र शस्त्रपरिणतेन ॥१०॥ शब्दार्थ - (पुढवीकाइया) पृथ्वी के जीव (आउकाइया) जल के जीव (तेउकाइया) अग्नि के जीव (वाउकाइया) हवा के जीव (वणस्सइकाइया) फल, फूल, पत्र, बीज, लता, कन्द आदि वनस्पति के जीव (तसकाइया) द्वीन्द्रियं, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव ।
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(सत्थपरिणएणं) शस्त्र-परिणत पृथ्वी को छोड़कर (अन्नत्थ) दूसरी (पुढवी) पृथ्वी (चित्तमंतं) जीव सहित (पुढोसत्ता) अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलग-अलग (अणेगजीवा) अनेक जीववाली (अक्खाया) तीर्थकरों के द्वारा कही गयी है। (सत्थपरिणएणं) शस्त्र - परिणत जल को छोड़कर (अन्नत्थ) दूसरा (आउ) जल. (चित्तमंतं) जीव सहित (पुढोसत्ता) अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलगअलग (अणेगजीवा) अनेक जीववाला (अक्खाया) कहा गया है। (सत्थपरिणएणं). शस्त्र-परिणत अग्नि को छोड़कर (अन्नत्थ) दूसरा ( तेउ) अग्नि (चित्तमंत ) जीव सहित (पुढोसत्ता) अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलग-अलग (अणेगजीवा) . अनेक जीववाली (अक्खाया) कही गयी है । (सत्थपरिणएणं) शस्त्र - परिणत वायु कों छोड़कर (अन्नत्थ) दूसरा (वाउ) वायु (चित्तमंतं) जीव सहित (पुढोसत्ता) अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलग-अलग (अणेगजीवा) अनेक जीववाला (अक्खाया) कहा गया है।
(सत्थपरिणएणं) शस्त्र-परिणत वनस्पति को छोड़कर (अन्नत्थ) दूसरी (वणस्सइई) वनस्पति (चित्तमंतं) जीव सहित (पुढोसत्ता) अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलग-अलग (अणेगजीवा) अनेक जीववाली (अक्खाया) कही गयी है। (तं जहा ) वह इस प्रकार है - (अग्गबीया) अग्रभाग में बीजवाली कोरंट आदि, (मूलबीया) मूल में बीजवाली जमीकन्द, कमल आदि (पोरबीया ) गाँठ में बीजवाली साँटे आदि (खंधबीया) वृक्ष शाखा प्रशाखा में बीजवाली बड़ (बरगद) आदि (बीयरुहा) बीज के बोने से ऊगनेवाली शाल, गेहूं आदि (समुच्छिमा) सूक्ष्म बीजवाली (तणलया) तृण, लता आदि (वणस्सइकाइया) वनस्पतिकायिक (सबीया) बीजों सहित (चित्तमंतं) सजीव (पुढोसत्ता) अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलग-अलग (अणेगजीवा) अनेक जीवोंवाले (अक्खाया ) कहे गये हैं (सत्थपरिणएणं) शस्त्र परिणत वनस्पति के बिना (अन्नत्थ) दूसरी सभी वनस्पति सचित्त है।
- सर्वज्ञ सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवान् महावीरस्वामी ने पृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु, इन चारों स्थावरों में अंगुल की असंख्यातवें भाग की अवगाहना में अलगअलग असंख्याता जीव और वनस्पतिकाय में असंख्याता तथा अनन्ता जीव प्ररूपण श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 22