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अदीन वृत्ति :
अदीणो वित्तिमेसिज्जा, न विसीइज्ज पंडिए । अमुच्छिओ भोअणंमि, मायणे हसणार ||२६|| बहु परघरे अत्थि, विविधं खाइमसाइमं ।
न तत्थ पंडिओ कुप्पे, इच्छा दिज्ज परो न वा ||२७|| सयणासणवत्थं वा, भत्तं पाणं वा संजए। अदितस्स न कुप्पिज्जा, पच्चक्खे वि अ दीसओ ||२८||
सं. छा.: अदीनो वृत्तिमेषये, -न्न विषीदेत् पण्डितः । 'अमूर्च्छितो भोजने, मात्रज्ञ एषणारतः ।।२६।। बहु परिगृहेऽस्ति, विविधं खाद्यं स्वाद्यम्। न तत्र पण्डितः कुप्येत्, इच्छयां दद्यात्परो न वा ।।२७।। शयनासनवस्त्रं वा, भक्तं पानं वा संयतः ।
अददतो न कुप्येत्, प्रत्यक्षेऽपि च दृश्यमाने ||२८|| भावार्थ : आहार में अमूर्च्छित मुनि, स्वयं के आहार के परिमाण का ज्ञाता मात्रज्ञ, और निर्दोष एषणा में निमग्न ऐसा मात्रज्ञ ज्ञानी मुनि आहार पानी न मिलने पर अदीन वृत्ति से गवेषणा करें। गृहस्थ के घर पर अनेक प्रकार की खाद्य - स्वाद्य सामग्री रहती है, पर वह न वहोराये तो ज्ञानी साधु उस पर क्रोधित न हो, वह इच्छापूर्वक वहोराये तो वहोरना, नहीं तो नहीं। गृहस्थ के घर में प्रत्यक्ष दिखायी देते शयन, आसन, वस्त्र एवं आहार पानी जो गृहस्थ न दे तो उस पर साधु क्रोध न करें ।। २६-२८।। . वंदनकर्ता से याचना का निषेध :
इत्थिअं पुरिसं वावि, डहरं वा महल्लगं ।
वंदमाणं न जाइज्जा, नो अ णं फरुसं वर ||२९||
सं.छा.ः स्त्रियं पुरुषं वाऽपि, डहरं वा महल्लकम्।
वन्दमानं न याचेत, न चैनं परुषं वदेत् ।।२९।।
भावार्थ : स्त्री, पुरूष, युवान या वृद्ध हो उस वंदनकर्ता के पास साधु किसी पदार्थ की याचना न करें। याचना करने से उसके भाव टूट जाते हैं। कारण होने पर योग्य व्यक्ति से याचना करने पर भी पदार्थ के अभाव में न वहोराये तो उसे कठोर वचन न कहे। पदार्थ न वहोराने से तेरा वंदन निष्फल है, कायकष्ट है, तुझे कोई लाभ नहीं ऐसा न कहे। वंदन न करे तो क्रोध न करें :
जे न वंदे न से कुप्पे, वंदिओ न समुहसे। एवमन्नेसमाणस्स, सामण्णमणुचिठ्ठई ||३०||
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 83