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· युवा गौरिति वै ब्रूयाद्, धेनुं रसदेति च।
ह्रस्वं महल्लकं वापि, वदेत् संवहनमिति च ।।५।। भावार्थ : पंचेन्द्रिय प्राणियों में यह स्त्री रूप गाय है या पुरुष रूप वृषभ है ऐसा निर्णय न हो तो तब तक प्रसंगवश बोलना पड़े तो गाय की जाति आदि जातिवाचक शब्द का प्रयोग करें।
इसी प्रकार मनुष्य, पशु-पक्षी सर्प, अजगरादि के विषय में यह स्थूल है, मेदयुक्त है, वध्य है (वाह्य है) पाक्य है, पकाने योग्य है। इस प्रकार मुनि न बोले। इससे अप्रीति, वधादि की शंका सह अशुभ बंध का निमित्त है।
प्रयोजनवश आवश्यक हो तो, बलवान है, (परिवृद्ध है) उपचित देहयुक्त है, युवा है, पुष्ट है, महाकाय युक्त है इस प्रकार उपयोगपूर्वक बोले। ..
प्रज्ञावान् मुनि गायादि दुहने योग्य है, वृषभ दमन करने जैसे हैं जोतने जैसे हैं, भार वहन करने योग्य है, रथ में जोड़ने योग्य हैं इस प्रकार न बोले। पाप का कारणं एवं प्रवचन की लघुता का कारण है।
प्रयोजनवश कहना पड़े तो गाय, बैल युवा है, गाय दूध देनेवाली है, बैल छोटा है, बड़ा है, धोरी वृषभ है इस प्रकार निर्दोष निष्पाप भाषा का प्रयोग करें ।।२१२५॥ वनस्पति के विषय में भाषा का प्रयोग :
तहेव गंतुमुज्झाणं, पव्वयाणि वणाणि | . रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासिज्ज पन्नवं ||२६|| अलं पासाय-खंभाणं, तोरणाणं गिहाण | फलिहग्गल-नावाणं, अलं उदग-दोणिणं ।।२७|| पीढए चंगबेरे अ, नंगले मइयं सिआ। जंतलठ्ठी व नाभी वा, गंडिआ व अलं सिआ ||२८|| आसणं सयणं जाणं, हुज्जा वा किंचुवस्सप्ट।
भूओवघाइणिं भासं, नेवं भासिज्ज पन्नवं ।।२९।। सं.छा.ः तथैव गत्वोद्यानं, पर्वतान् वनानि च।
वृक्षान् महतो प्रेक्ष्य, नैवं भाषेत प्रज्ञावान् ।।२६।। अलं प्रासादस्तम्भयोः, तोरणानां गृहाणां च। परिघार्गलानावां वा, अलमुदकद्रोणीनाम् ।।२७।। पीठकाय चङ्गबेराय, लाङ्गलाय मयिकाय स्यात्। यन्त्रयष्टयेवा नाभयेवा, गण्डिकायै वाऽलं स्युरेते ।।२८।। आसनं शयनं यानं, भवेद्वा किञ्चिदुपाश्रये।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 114