Book Title: Sarth Dashvaikalik Sutram
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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जहारिह-मभिगिज्झ, आलविज्ज लविज्ज वा ||२०||
सं.छा.ः आर्यक! प्रार्यक! वापि, बप्प! चुल्लपितरिति च।
मातुल! भागिनेयेति, पुत्र! नप्तर् ! इति च ॥१८॥ हे भो हलेति अन्येति, भर्त्तः स्वामिन्! गोमिन्! होल! गोल! वसुल इति, पुरुषं नैवमालपेद् ।।१९।। नामधेयेन य ब्रूयात्, पुरुषं गोत्रेण वा पुनः । यथाहमभिगृह्य, आलपेल्लपेद्वा ॥२०॥
भावार्थ : हे आर्यक, पार्यक, पिता, चाचा, मामा, भानजा, पुत्र, पौत्र, हे, भो, हल, अन्न, भट्ट, स्वामी, गोमी, होल, गोल, वसुल इत्यादि नामों से पुरुषों को न बुलावें । ऐसे बुलाने से राग-द्वेष अप्रीति आदि दोषों की उत्पत्ति होती है।
जिस पुरुष को बुलाना हो उसका नाम लेकर, या गौन से या यथायोग्य गुणदोष का विचारकर एक बार या बार-बार बुलावें ।।१८-२० ।। पशुओं के विषय में भाषा का प्रयोग :
पंचिंदिआण पाणाणं, एस इत्थी अयं पुमं । जाव णं न विजाणिज्जा, ताव जाइत्ति आलवे ||२१|| तहेव माणुसं पसुं, पक्खिं वा वि सरीसवं । थूले पमेईले वज्जे, पाइमे त्ति अ नो वट ||२२|| परिवूठ त्ति णं बूआ, बूआ उवचिअ त्ति अ संजार पीणिए वा वि, महाकायत्ति आलवे ||२३|| तहेव गाओ दुज्झाओ, दम्मा गोरहग त्ति अ ! वाहिमा रहजोगि त्ति, नेवं भासिज्ज पण्णवं ||२४|| जुवं गवित्ति णं बूआ, धेणुं रसदयं त्ति अ रहस्से महल्लर वा वि, वर संवहणि त्ति अ ||२५||
सं.छा.ः पञ्चेन्द्रियाणां प्राणिनां, एषा स्त्री अयं पुमान्।
यावदेतन्न विजानीयात्तावज्जातिमित्यालपेत् ।।२१।। तथैव मानुषं पशुं, पक्षिणं वापि सरीसृपम् । स्थूलः प्रमेदुरो वध्यः, पाक्य इति च नो वदेत् ।।२२।। परिवृद्ध इत्येनं ब्रूयाद्, ब्रूयादुपचित इति च । सञ्जातः प्रीणितो वापि, महाकाय इति चालपेत् ||२३|| तथैव गावो दोह्या, दम्या गोरथका इति च ।
वाह्या रथयोग्या इति, नैवं भाषेत प्रज्ञावान् ।।२४।।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 113
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