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अनाचरित (अजाणं) साधुओं को (आसइत्तु) बैठने के लिए (सइत्तु) सोने के लिए ।।५४।। (पीढए) बाजोट (अहिट्ठगा) मार्ग में चलनेवाले ।।५५।। (गंभिर विजया) अप्रकाश आश्रय युक्त (विवज्जिआ) विशेष प्रकार से मना करें ।।५६।। (इमेरिसं) आगे. कहा जायगा ऐसे (आवज्जइ) प्राप्त होता है (अबोहियं) मिथ्यात्व रूप फल ।।५७॥ (विपत्ति) नाश (पडिग्घाओ) प्रत्याघात (पडिकोहो) प्रतिक्रोध (अगुत्ती) नाश ।।९।। (अन्नयरागस्स) किसी को भी (अभिभूअस्स) पराभव पाया हुआ ॥६०।। (वुक्कतो) भ्रष्ट (जढो) नाश पाना ।।६१।। (घसासु) पोलीभूमि (भिलुगासु) दसर युक्त भूमि (विअडेण) प्रासुक जल से (उप्पलावए) प्लावित करना ।।६२।। (असिणाणमहिटगा) अस्नान का आश्रय करने वाले ॥६३।। (कक्कं) कल्क चंदनादि का लेप (लुद्धं) लोदर (पउमगाणि) केसर (गायस्स) शरीर के (उव्वट्टणट्ठाए) उद्वर्तन. अर्थात उबटन के लिए ।।६४।। (नगिणस्स) नग्न, प्रमाणोपेत वस्त्रधारी, (दीह) दीर्घ (नहंसिणो) दीर्घ . नखयुक्त (कारिअं) करना ।।६५।। (खवंति) शोधता है (अमोह दंसिणो) मोहरहित (धुणंति) खपाता है (नवाइं) नये ।।६८।। (सओवसंता) सदाउपशांत (उउप्पसन्ने)
शरद ऋतु में (उवेंति) उत्पन्न होता है (सविज्जविज्जाणुगया) स्वयंकी परलोकोपकारिणी विद्यायुक्त (जसंसिणो) यशस्वी (अममा) ममत्वरहित ।।६९।। प्रश्नकर्ता एवं समाधान कर्ता कौन?
नाणदंसणसंपन्नं, संजमे अ तवे रयं। ' गणिमागमसंपन्नं, उज्जाणम्मि समोसढं ||१|| रायाणो राचमच्चा य, माहणा अदुव खत्तिआ।
पुच्छंति निहुअप्पाणो, कहं भे आयारगोयरो ||२|| सं.छा.: ज्ञानदर्शनसम्पन्न,संयमे च तपसि रतम।
गणिनमागमसम्पन्न, उद्याने समवसतम् ।।१।। राजानो राजामात्याश्च, ब्राह्मणा अथवा क्षत्रियाः।
पृच्छन्ति निभृतात्मानः, कथं भवतामाचारगोचरः ।।२।। भावार्थ ः सम्यग्ज्ञान, दर्शन युक्त, संयम और तप में रक्त, आगम संपन्न, उद्यानादि में पधारे हुए आचार्यादि भगवंतों से राजा, प्रधान, ब्राह्मण या क्षत्रियादि हाथ जोड़कर स्वच्छ मन से प्रश्न करते हैं कि हे भगवंत! आपके आचार विचार किस प्रकार के हैं? हमें समझाओ ।।१-२॥ समाधान कैसे गुरु कर सकते हैं?
तेसिं सो निहुओ दंतो, सव्वभूअसुहावहो।
सिक्खाए सुसमाउत्तो, आयक्खइ विअक्खणो ||३|| सं.छा. तेभ्योऽसौ निभृतो दान्तः, सर्वभूतसुखावहः।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 90