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( विउहित्ताण ) निकालकर ||२२|| ( असंसत्तं ) स्त्री की आंखों से आंखें न मिलाना (पलोइज्जा) अवलोकन करना (नाइदूरावलो अए) अति दूर न देखना (उप्फुल्लं) विकसित नेत्रों से (न विणिज्झाए) न देखें (निअटिज्ज) पीछे लौट जाय (अयंपिरो) बिना बोले ||२३|| (मिअं) मर्यादा वाली ||२४|| (संलोगं) देखना ||२५|| (आयाणे) लाने का मार्ग ॥२६॥ (आहरंती) भिक्षा लानेवाली (सिआ) कदाचित् (परिसाडिज्ज) नीचे गिरा देती (तारिसं) वैसा ||२८|| ( संमद्दमाणी ) मर्दन करती ( असंजमकरिं) साधु के लिए जीव हिंसा करने वाली।।२९।। (साहट्टु) एकत्रितकर (निक्खिवित्ताणं) रखकर (संपणुल्लिआ ) एकत्रित हिलाकर ।।३०।। (ओगाहइत्ता) जलादि में चलना (चलइत्ता) इधर-उधर करके ||३१|| (पुरेकम्मेण) साधु के लिए पूर्व में धोया हुआ (दव्वीओ) कड़छी से ||३२|| (कुक्कुस कओ) तुरंत के तोड़े हुए क्रौंच बीज (मट्टिआउसे) मट्टी तथा क्षार से (उक्किट्ठ) बड़े फल (संसट्टे) खरंटित (लोणे) नमक से (गेरूअ) सोनागेरू (सोरट्ठिअ) फटकड़ी ।। ३३-३५ ।। (संसण). खरंटित (ओसणीयं) निर्दोष ||३६|| (छंद) अभिप्राय (पडिलेह) विचार करे ||३७|| (कालमासिणी) पूर्ण मासवाली (निसन्ना) बैठी हुई (पुणट्टओ) पुनः उठे ।। ४० ।। (थणगं) स्तन (पिज्जमाणी) पान करानेवाली (निक्खिवित्तु) रखकर (रोअंतो) रोता हुआ (आहरे) लेकर आये ।।४३।। (उव्वण्णत्थं) तैयार किया हुआ ॥ ४४ ॥ ( निसाओ ) दलने के पत्थर से (पीढण) काष्ठपीठ से (लोढेण) छोटा पत्थर (विलेवेण) मिट्टी का लेप (सिलेसेण) लाक्षादि पदार्थ से (उब्भिंदिउं ) लेप आदि दूरकर (दावओ) दाता ।।४५-४६ ।। (दाणट्ठा) दानार्थ ।।४७।। (पुण्णट्ठा) पुण्यार्थ || ४९ || (वणिमट्ठा) भिक्षाचर हेतु ॥५१॥ (समणट्ठा) साधु के लिए ||३|| ( उस्सक्किआ ) चूल्हे में काष्ठ डालकर (ओसक्किया) काष्ठ निकालकर (उज्जलिआ ) एकबार काष्ठ डालकर (पज्जालिआ ) बार-बार काष्ठ डालकर (निव्वविआ) बुझाकर (उस्सिंचिआ ) उभरा आने के भयं से थोड़ा अन्न निकालकर (निस्सिंचिआ ) पानी का छिटकावकर (उव्वत्तिआ) दूसरे बर्तन में डालकर (ओयारिया) नीचे उतारकर ।।६३-६४।। (कट्ठ) काष्ठ (संकमट्ठाओ) चलने हेतु (चलाचलं) चलविचल ||६५ || (निस्सेणिं) निसरणी (पीढं) बाजोट (उस्सवित्ताणं) ऊँचे करके (मंचं) पलंग (कीलं) खीला (पासायं) प्रासाद पर (दुरूहमाणी) दुःखपूर्वक चढती हुई (पवडिज्जा) गिर जाय (लुसओ) टुट जाय (जगे) प्राणी (अआरिसे) ऐसा ||६७-६९ ।। (पलंब) ताड़ के फल (सन्निरे) पत्र शाक (तुंबागं) तुंबा (सिंगबेरं) अद्रक ॥ ७० ॥ (सत्तुचुण्णाई) सत्तु का चूर्ण (कोल चुण्णाइं) बोर का चूर्ण (आवणे) दुकान (फाणिओ) पतला गुड़ (पूयं ) पुडले (विक्कायमाणं) बेचा जानेवाला (पसढं) अधिक दिन का (रण) सचित्त रज से (परिफासिअं) खरंटित ॥७१ - ७२ ।। (बहुअट्ठिअं) अधिक कठिन बीजवाला (पुग्ग़लं) सीताफल (अणिमिसं) अनानास (बहुकंटयं) कांटे युक्त (अच्छियं) अस्तिक वृक्ष का फल (तिंदुअं) तिंदुक वृक्ष का फल (बिल्लं) बिल्व (सिंबलिं) शीमला फल (सिया) होवे (उज्जियधम्मिये) त्याज्य ||७३-७४ || (वारधोअणं) गुड़ के घड़े को धोया हुआ पानी श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 54