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कथं भुञ्जानो भाषमाणः पापं कर्म न बध्नाति?।।७॥ शब्दार्थ - (कह) किस प्रकार (चरे) गमन करे? (कह) किस प्रकार (चिट्ठ) खड़ा रहे? (कहं आसे) किस प्रकार बैठे? (कह) किस प्रकार (सए) शयन करे? (कह) किस प्रकार (भुंजतो) भोजन करे? और (भासं) बोलते हुए (पावकम्म) पापकर्म को (न बंधइ) नहीं बांधता?
जम्बूस्वामी पूछते हैं कि हे भगवन्! किस प्रकार चलते, बैठते, खड़े रहते, सोते, भोजन करते और बोलते हुए साधु-साध्वी पाप-कर्म को नहीं बांधते हैं?
जयं चरे जयं चिट्टे, जयमासे जयं सर। ' जयं भुंजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधइ।।८।। सं.छा.: यतं चरेद्यतं तिष्ठेद्, यतमासीत यतं स्वपेत्।
यतं भुञ्जानो यतं भाषमाणः पापं कर्म न बध्नाति।।८।। शब्दार्थ - (जयं) जयणा से (चरे) गमन करते (जयं) जयणा (सेचिट्ठ) खड़े रहते (जयमासे) जयणा से बैठते (जयं) जयणा से (सए) सोते (जयं) जयणा से (भुंजतो) भोजन करते और जयणा से (भासंतो) बोलते हुए (पावकम्म) पापकर्म को (न बंधइ) नहीं बांधते हैं। .. सुधर्मास्वामी फरमाते हैं कि हे जम्बू! ईर्यासमिति सहित जयणा से गमन करते,खड़े रहते, बैठते, सोते हुए, एषणासमिति सहित जयणा से भोजन करते हुए और भाषासमिति सहित जयणा से परिमित बोलते हुए पाप-कर्म का बन्ध नहीं होता। "सभी आत्मा को स्वात्म सम मानना"
सव्वभूयप्पभूयस्स, सम्मं भूयाइ पासओ। - पिहिआसवस्स दंतस्स, पावं कम्मं न बंधड़ा|९|| सं.छा.ः सर्वभूतात्मभूतस्य, सम्यग् भूतानि पश्यतः। - पिहिताश्रवस्य दान्तस्य, पापं कर्म न बध्नाति।।९।।
शब्दार्थ - (सव्वभूयप्पभूअस्स) सभी जीवों को आत्मा के समान समझनेवाले (सम्म)
अच्छे प्रकार से (भूयाइं) समस्त प्राणियों को (पासओ) देखनेवाले (पिहिआसवस्स) .. आश्रव द्वारों को रोकनेवाले (दंतस्स) इन्द्रियों को दमनेवाले साधु-साध्वियों को (पावकम्म) पापकर्म का (न बंधइ) बंध नहीं होता है।
____ जो साधु-साध्वी आश्रवद्वारों को रोकने, इन्द्रियों को दमने, सभी जीवों को : आत्मा के समान समझने और देखनेवाले हैं उनको पापकर्म का बंध नहीं होता। "ज्ञान की महत्ता"
पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सवसंजए। अन्नाणी किं काही, किं वा नाहीइ छेअपावगं ||१०।।
- श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 45