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के लिए करता हूँ। __दूसरे आत्मार्थी मोक्षा भिलाषुक साधु साध्वियों को भी उपरोक्त प्रकार से षट्कायिक जीवों की जयणा करते हुए ही संयम-धर्म में वरतना चाहिए। क्योंकि हर एक जीवों पर दया रखना यही पारमार्थिक' मार्ग है।
जयणा और विहार आदि करने का उपदेश अजयं चरमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ।
बंधई पावयं कम्म, तं से होड़ कडुयं फलं ||१|| सं.छा.ः अयतं (च) चरंश्च, प्राणभूतानि हिनस्ति।
बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम् ।।१।। शब्दार्थ - (अजयं) ईर्यासमिति का उल्लंघन करके (चरमाणो) गमन करता हुआ साधु (पाणभूयाई) एकेन्द्रिय आदि जीवों की (हिंसइ) हिंसा करता है (य) और (पावयं कम्म) ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को (बंधइ) बांधता है (से) उस (तं) पापकर्मका (कडुअं फलं) कडुआ फल (होइ) होता है।
अजयं चिठ्ठमाणो अ, पाणभूयाई हिंसड़।
बंधई पावयं कम्म, तं से होड़ कडुयं फलं ||२|| सं.छा.ः (एवं) अयतं तिष्ठंश्च, प्राणभूतानि हिनस्ति।
बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम्।।२।। . शब्दार्थ - (अजयं) ईर्यासमिति का उल्लंघन करके (चिट्ठमाणो) खड़ा रहता हुआ साधु
(पाणभूयाई) एकेन्द्रिय आदि जीवों की (हिंसइ) हिंसा करता है (य) और (पावयं कम्म) • ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को (बंधइ) बांधता है (से) उस (तं) पापकर्म का (कडुअं · फलं) कटुंफल (होइ) होता है।
. अजयं आसमाणो अ, पाणभूयाई हिंसइ। - बंधई पावयं कम्मं, तं से होइ कडुयं फलं ||३|| सं.छा.: (एवं) अयतमासीनश्च, प्राणभूतानि हिनस्ति।
बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम् ।।३।। शब्दार्थ - (अजयं) ईर्यासमिति का उल्लंघन करके (आसमाणो) बैठता हुआ साधु (पाणभूयाई) एकेन्द्रिय आदि जीवों की (हिंसइ) हिंसा करता है (य) और (पावयं कम्म)
ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को (बंधइ) बांधता है (से) उस (तं) पापकर्म का . . (कडुअं फलं) कटु फल (होइ) होता है।
अजयं सयमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसड़। बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ||४||
१. नाश
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 43